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प्रेमघन सर्वस्व

स्क॰ ७ अ॰ ३० में सती की देह विष्णु भगवान से छिन्न किये अंशों के गिरने से जो जो सिद्ध पृष्ठ[१] हुए उनमें विन्ध्याचल सर्वोत्तम कहा है। कोई उन्हें दुर्गा अर्थात् नन्दात्मजा, जैसा कि वृहदौशनस उपपुराण के विन्ध्य माहात्म्य में[२] कोई लक्ष्मी[३] और कोई योग भाया[४] अथवा महामाया की मूर्ति मानते हैं। महाभारत के विराट पर्व में जो दुर्गा स्तोत्र है, उसमें भी,—"यशोदागर्भ सम्भूतां नारायणवरप्रियाम। नन्दगोप कुले जाताम।" "कृष्णा

छविसमाकृष्णा", "वासुदेवस्यभगिनी", "विन्ध्येचैवनगश्रेष्ठे तवस्थानं हि शाश्वतम्" इत्यादि देखने से इन्हें नन्दकुमारी ही निश्चय करना पड़ेगा। इसी प्रकार शेष चार और मूर्तियों में, विशेषतः दोनों काली जी में से भी यदि किसी एक को विशेष रूप से कजली देवी मान ले तो भी कोई बाधा नहीं पड़ती है। सारांश कजली देवी (अर्थात काली वा हरिकाली) विन्ध्याचली देवी ही हैं और उन्हीं के अनेक नामों में से एक हरिकाली वा कजली भी हैयद्यपि काली और कजला स्वतः समानार्थवाची शब्द है। इसी प्रकार इसमें भी सन्देह नहीं कि यह इन्हीं का जन्मोत्सव सम्बन्धी उत्सव है इसी से विशेष


  1. विन्धयेविन्ध्याधिवासिनी व। विन्ध्याचल निवासिया स्थान सर्व्वसमम्।
  2. निविश्य नन्दपल्यां तु यशोदायामनन्तकम्।
    स्वयं प्रादुरवभूद्दे वलोकानां हित काम्याया॥आ॰ २६॥

  3. महात्रिकोण यत्रस्था विंध्याचल निवासिनी
    विधाविधाय स्वरुपं लोकानां हितकाम्यया॥३॥
    महालक्ष्मी पूर्व भागे महाकाली च दक्षिणे।
    महासरस्वती प्रत्यक् कोणे यन्त्रस्यसंस्थिता॥४॥
    सा दुर्गा दुर्गतिहारा दुर्गदैत्यविनाशिनी।
    विन्धयाद्रिनिलया देवी मधुकैटभभानाशीनी॥५॥
    छिन्नमस्ता च सातारा सादेवी शोडशाक्षरी॥

    विन्ध्यमहात्म्य आ॰ २४

  4. भगवानपि विश्वात्मा विदित्याकंसजंभयम्।
    यद्भांनिजनाथनां देवक्याः पुत्रतां शुभें।
    प्रापस्वामि त्वं यशोदायां नन्दपल्यां भविष्यसि॥९॥

    श्रीमद्भागवत, स्क॰ १० अ॰ २॥