पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 2.pdf/३९२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३६०
प्रेमघन सर्वस्व

बजे पर पचासा[१] तीन ठे रोटियै कै रहि मै आसा रामा।
हरि-हरि तेह पर पठे झारें छुरी गँडासा रे हरी॥

सारांश जो पुरुषों के अतिरिक्त ग्राम्य स्त्रियों से भी गाई जा सके वा गाई जाती है।

५—कजला वह है कि—जो प्रायः भाषा भाव और प्रबन्ध आदि में अधिकांश उसके विरुद्ध हो और जो कदाचित् कठिनता से सभ्य ग्रहस्थिनों और गवनहारिनों ही से गाई जा सके। तौभी, कजलो के किसी लय से अला न हो और न उसके रस को बिगाड़ता हो। जैसे कि—

बयत सिरात, मेरे नाहीं बरसात, बहरी भई बरसात,
दुख दुहस महावा रे बालमुआ! शिवदास कवि!

६—उजला वह है, कि जो सनी अंशों में उसके विरुद्ध हो और जो कदाचित् कुछ अखाड़ेवाले वा और कोई सील वा तालीम पाकर ही गा सकै, तथा जिसको सुनने में काली के सामान्य लय में भ्रम हो, जो साखियों, भिन्न-भिन्न अटपटे छन्दों, वा अन्य प्रकार की कलियों के मेल से विकृत हो, अथवा अन्य भाषाओं के बेबैठते शब्दों, भावों और प्रबन्ध से युक्त हो; जिसको अाज कल यहाँ के अखाड़ेवात्ते बहुतायत से बनाते और गाते तथा जिसका अनुकरण अन्य भी करते हैं। जैसे कि, बाबा मनोहर दास दिलदार कृतः—

नित्य निरञ्जन अलख ब्रह्म सच्चिदानन्द करतार रे॥
प्रथम किया सृष्टी को जिसने लक्ष रूप विस्तार रे।
कारण से कारज करि माया जीव हुये एक तार रे॥
निज अनन्त शक्ति से जिसने प्रगट रचा संसार रे।
अखण्ड जिसका कार रे! है जग का रखवार रे॥ इत्यादि

अथवा—

जुलूफ बने तिहारे मीम लाम रे साँवलिया॥
बाजे संबुल औ रैहान, बाजे कहते हैं चौगान,
बाजे हबश कमंदे बाजे शाम रे साँवलिया।


  1. जेलखाने के क़ैदियो के खाना खाने के सूचना का घड़ियाल का आह्वन।