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तृतीय साहित्य सम्मेलन कलकत्ता के सभापति का भाषण

है। पास, यदि मैं इस फ़ेल में फेल हूँ, यदि अपने कर्तव्य में अकृतकार्य हूँ, दो मेरा क्या दोष है? अस्तु, अब मैं पुनः एक बार धन्यवाद देकर आपसे यह निवेदन करूँगा कि—जैसे भक्तों को सुलभ, उनके प्रति श्रद्धा और सम्मान से समर्पित, बिना गन्ध के भी वन्य सुमनाञ्जलि को देवता, राजा और गुरुजन सादर स्वीकार कर प्रसन्न होते, वैसे ही आप सब महानुभाव भी मेरी इन सारशून्य विशेषता विहीन कुछ वाक्यावलियों के सुनने का कष्ट सहन कर कृतार्थ करें। और उसकी न्यूनता और दोष मात्र को अपनी उदारता और मेरी अल्पज्ञता पर दृष्टि दे क्षमा कर वशेष अनुग्रहीत करें।