पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 2.pdf/४०५

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भारतीय नागरी भाषा

एकही है, जिससे हमारे देशी और विदेशी विद्वान् भिन्न-भिन्न अभिप्राय निकाल लेते हैं। एकही मुकद्दमें की मिसिल से दोनों पक्ष के वकील दो प्रकार का प्रमाण संग्रह करते और परिणाम निकालते हैं। जननी और विधाता दोनों लड़के को पालती, पर उन दोनों के पालन में भेद होता है।

जैसे इन दिनों जब तक कि रजिस्ट्री न हो जाय, सच्चे से सच्चा दस्तावेज़ भी प्रमाणिक नहीं माना जाता। वैसे ही जब तक कोई पश्चिमीय विद्वान स्वीकार न कर लें, कोई प्रभाग प्रमाणित नहीं कहा जाता। प्रमागित न माना जाय, अदालत डिक्री न दे तौभी क्या यह सच्चा दस्तावेज वास्तव में झूठा है? एक दिन भारत ही से विद्या विज्ञान और सभ्यता सारे संसार में फैली थी। आज पश्चिम से ज्ञानसूर्य का प्रकाश हुआ है और निःसन्देह अब मानो पश्चिम उसका सब ऋण चुका चला है। आज वहीं की विद्या और विज्ञान से भारत की आँखें खुली है। हमारे देश के लोग अब तक अवश्य ही अविद्या अंधकार में सो रहे थे। उनके अनेक अटपटे आक्षेपों का प्रतिवाद कौन करता? अब उनके द्वारा ये भी जगे और उन के सम्मति स्वर्ण को निज विचार की कसौटी पर कस चले हैं। आशा है कि कुछ दिनों में बहुतेरे विवादग्रस्त विषय उभय पक्ष में सिद्धान्त रूप से स्वीकृत हो जायेंगे। यद्यपि अनेक भारत सन्तान प्राज उन्हीं के सुर में सुर मिलाये वही नाग आलाप रहे हैं। किन्तु वे क्या करें कि उन्ही की टेकनी के सहारे वे चल सकते हैं। तो भी सदा यही दिन न रहेगा। सदैव हमारे भाई औरों ही की पकाई खिचड़ी खाकर न सराहेंगे। वरञ्च वे भी शीघ्र ही पूर्वी और पश्चिमी उभव विज्ञान चक्षु को समान भाव से खोलेंगे, आलस्य छोड़ कर अपने अमूल्य रत्नों को टटोलेंगे और स्वरे खोटे की परख कर स्वयं अपने सच्चे सिद्धान्त स्थिर कर लेंगे।

अभी कल की बात है कि हमारे देश के गौरव स्वरूप ब्राह्मण कुल तिलक पण्डितवर बाल गङ्गाधर तिलक ने[१] अपने विलक्षण विद्या वैभव, और प्रतिभा से आर्यों के आदि निवास स्थान योंही वैदिक साहित्य की प्राचीनता—जिसे पश्चिमीय विद्वान ४ सहस्र वर्ष से अधिक नहीं मानते थे, उसे ८ सहस्र वर्ष सिद्ध कर दिया है। यही अन्य


  1. Qrion or Researchers into the Antiquity of the Vedas.