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भारतीय नागरी भाषा

नाम, मनुष्य और पशुओं के नाम भी ठीक ठीक संस्कृत ही के से वा कुछ बिगड़े ग्राम्य जनों से अद्यापि बोले जाते हैं

अब कुछ ऐसे शब्द देखिये जिनके लिये यद्यपि संस्कृत के ही कुछ बिगड़े दूसरे शब्द भी हैं, तौभी इनका प्रचार उन्हीं के तुल्य है; जिसे गवार से गँवार भी बोलता और समझता है, जैसे—

जल, थल, मल, नर, सर, माता, पिता, विधया, बालक, पवन, पर्वत आदि।

अब कुछ ऐसे शब्द लीजिये कि जो उच्चारण के भेद से बिगड़कर भी मूल से भिन्न नहीं हुए है जैसे—

संस्कृत भाषा संस्कृत भाषा संस्कृत भाषा
भूमि भुई आकाश अकास हेमन्त हेवँत
पृथ्वी पिरथी मनुष्य मानुख क्षेत्र खेत
पानीय पानी सूर्य सुरुज शरीर सरीर
श्वास साँस चन्द्रमा चन्दा वृक्ष बिरछ
प्रजा परजा दर्शन दरसन यजमान जजिमान

हमारी भाषा का सम्बन्ध मुख्यतः आर्य प्राकृत वा महाराष्ट्री ही से चला आता है। महाराष्ट्री और अर्द्ध मागधी में भी कुछ विशेष भेद नहीं है। यही श्राता वा नागर में भी अधिक अन्तर नहीं। श्रार्थ प्राकृत में केवल दो ही वचन होते' अर्थात् एक वचन और बहुवचन। द्विवचन नहीं। यही क्रम हमारी में भी चला आता है। हिन्दी में लिङ्गों की अस्थिरता भी उसी का भाषा अंश है। अब हम कुछ ऐसे शब्दों को दिखलाते हैं कि जो संस्कृत से प्राकेत होकर हमारी भाषा में आये हैं। जिससे उनके रूपों के परिवर्तन का क्रम जाना जायगा। यथा,—

सर्वनाम।
संस्कृत प्राकृत भाषा संस्कृत प्राकृत भाषा
अहम् अम्मि हम, मैं त्वम् तुं, तुव तुम, तब
यः ये जो, जे जो, जे सः ते सो, ते ते, वह, वे
कः के को, के के, कौन एषः, एते येते, येदे, ये, यह,

योही और भी समझिये। सामान्य शब्द यथा,—