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प्रेमघन सर्वस्व

समाचार स्वयं विद्युत लाई; अरे यह क्या एक छोटा सा टुकड़ा बादल का भी सिगिनल सा झुका दिखाई देता है तब निश्चय हो चुका कि महाराज पावस की स्पेशल ट्रेन देखो, यह आन के आन में या पहुँची और चातक चारण और मयूरियों ने मधुर स्वर में वाराङ्गनाओं के समान गान प्रारम्भ किया।

सुनकर संजोगिनी ससिमुखियों ने सहेलरियों से शासन किया कि! अरी खस खास की टट्टियों को हटाओं और वायुयन्त्र (हवाकश) को दूर करो तहखानों से शीघ्र चल कर वाटिका के बंगलों को सजाकर तैयार करो, जल यंत्र और फौआरों को बन्द करने की आशा करो और जो कि अब शर्वती, संदली और अरगजे के वस्त्रों के दिन गये; अतएव सूहा, गुलेनार, गुल अब्बान्ती, करौंदिया, और सुआपंखी, सबङ्गः जर्मुरदी, जङ्गारी गन्धकी धानी रङ्ग के वस्त्रों को केवड़े केतकी और जूही के इत्र से सुगन्धित करो क्योंकि अब मिट्टी और खस के इन के सुगन्ध की बहार गई; फूलदानी में बर्साती फूलों के गुच्छे लगाये जाय गान करने वालियाँ वाराङ्गनायों से कहो कि धुरिया मलार को छोड़ जल्द मेघ मलार और वाती गीतों के गान का प्रारम्भ करें, मैं प्यारे प्रीतम के सङ्ग अभी वहाँ वर्षा विहार अवलोकन के अर्थ आऊँगी। और विचारी वियोगिनी वनितायों के प्रान प्रयान करने लगे।

परिपूर्ण पावस

सत्य है! वे क्यों कर जी सकें जब कि ऐसा प्रवल शत्रु अर्थात् महाराज पावस वीरेश कि जिसकी सहायता के बिना काम बेकाम सा रह सकाम कृपा कटाक्ष की कामना करता है, अपने समस्त साज समाज को साज आज आया; देखो यह गरज के मिस तो ने लगी, कि आकाश धूम स्याम धन सघन से विर समस्त संसार को अंधकारमय बना दिया; इन्द्र धनुरूपी धनुष से बंदियों के वाणों की वर्षा होने लगी, बकावलि सेन समूह के संग देखों यह बिजली के पटा को फिराता कौन चला पाता, क्या यह सावन सेनापति है? अवश्य! देखो यह दादुरन की बोली हैं।

निश्चय वसन्त से रितुराज पद को छीन कर आज आवधापही सच्चा रितुपति बनना चाहता है और सत्य भी है किन्तु जब वह एक प्रबन्ध कर्ता आज्ञाकारी स्वामी की उपाधि को धारण करै, कैसे क्रोध न आवै, और फिर व्यथित ब्याकुल वियोगी विचारे भी कि जो व्यर्थ कहने मात्र को जीवित हैं, वस्तुतः वे मृतक यथा "गिनती गिनिबे को रही छतहूँ अछत समान। अब सखि ये