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प्रेमघन सर्वस्व

चौहान वीरों का युद्ध। भुजंगी—

बढ़े दान चहु प्रान चालुकक प्रेतं। महा मन्त्र विद्या गुर' सुक्न जेतं॥
धने घोर नीसान गज्जे गहारं। उठे जानि प्रासाद वर्षा प्रहारं॥
वजी भेरि भकार नफेरि नादं। तड़कंत बिज्जू करनाल सादं॥
छुटी बान जंत्री उड़ीं गेन अग्गी। महादेव बीरं चत्रं निद्र भगी॥
तहलाई सिंधू सुरं हर्ष वीरं। नचे ताल संभाल बेताल श्रीरं॥
नचे नृत्य नीमान नारद बाई। चढ़ी व्योम विम्मान अपछरि मुहाई॥
जके जप गंधर्व कौदिग्गहारी। प्रलै कालयं घाल घ्यालं विचारी॥
दुवं दिग्गपाल दुवै क्षत्र धारी। दुवं ढाल ढिं चाल मल्लं करारी॥

हिन्दू मुसलमानों के युद्ध से—

त्रोटक—सारंग चढ़यौ कविचंद भनं। रन नंकिय बीर नफेरि धनं॥
छननंकहि घटनघंटन की। तननकहि मेरि भयंटन की॥
छ्ननंकहि घुध्धर पष्ष रनं। ठननंकहि आइ प्रसद्द धनं॥
बर चिकिद चक्कि मिले पलटे। दिघि घुध्धुर रेनिय अस्य बटे॥
तमके तम तेन पहार उठे। बहुरे किधु पावस अभ्भ बुठे॥
कविचंद सुग्रंसुव साव धरे। त्रय नेत्त जु गंग समीर बरे॥
दोउ दीन अनंदिय तेग छुटी। सु बनै चहुआनय मार टटी॥

उसके दूसरे रूप ब्रज भाषा से तो आज हम सभी परिचित हैं, जिस का समय वैक्रमाब्द की १६ वीं शताब्दी मानना चाहिये। उसके सब कधियों की संख्या बतलानो तो कठिन है। तौभी कुछ प्रसिद्ध कवियों के नाम दिये देते हैं। उन में प्रधान कार्य जातीय सुकवियों की कई श्रेणी हैं, जैसे~कबीर, कमाल, विद्यापति, नान्हक, दाडू, नाभा आदि—जिन की भाषायें कुछ पुरानी,सन- मानी और प्रान्त विशेष की बोलियों से मिश्रित हैं। दूसरे समूह में मीराबाई सूरदासादि अष्टसखा, नागरीदास, हिंतहरिवंश, तानसेन आदि हैं, जो अधिकांश प्रायः भजन और विष्णुपद तथा रागरागिनियों के प्रणेता हैं। तीसरे में केशव, नरहरि, तुलसी, देव, भूषण, मतिराम, बिहारी, भिखारी दास, आनन्दवन, पद्माकर, कविन्द, पजनेस श्रादि हैं, जो पुष्ट ब्रजभाषा और मिश्रित भाषा के कवि हैं। चौथे में देवत्वामी, बेनी प्रवीन, ठाकुर, सेवक, महाराज रघुराज सिंह, द्विजदेव, हरिश्चन्द्र आदि हैं कि जो पिछले दिनों के युरानी और कुछ कुछ नबीन शैली के भी कवि हैं।