पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 2.pdf/४२९

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भारतीय नागरी भाषा


योही मुसल्मान कवियों में जायसी, मुबारक, रहीम, नवी, रसखान, आलम और नेवाज, योंही नजीर, निजामी,मौज ये सब भाषा वा व्रजभाषा तथा उर्दू के कवि हैं। टकसाली ब्रजभाषा के कवि सूरदास, नन्ददास, हित हरवंश या देव, रहीम, रसखान, दास, आनन्दवन और बिहारी आदि ई की कही जाती है। जिन में बिहारी और देव आदर्श रूप हैं। यन्त्र पि इसके उदाहरण की आवश्यकता नहीं, तौभी कुछ देना ही उचित है। जैसे—श्री सूरदास जी-

कुँवर जल भरि भरि लोचन लेत।
मानहुँ स्रवत सुधानिधि मोती, उरगन अवलि समेत॥ अथवा—
गज निरख्यो फहरानि बरन की।
लग्यो ललकि मुख कमल निहारन, भूली गई सुधि प्राह ग्रसन की है॥

महाकवि देव—

देस बिदेस के देखे नरेसन, रीझ की कोऊ न बूझ करेंगो।
तामों तिन्हें तजि जानि गिरथो गुन सो गुन सौगुनी गाँटि पौगो॥
बाँसुरीवारो बड़ी रिझबार है, देव जो नेक सुढार ढरंगो।
साँवरो छैल वहीं तो अहीर को पीर हमारे हिये की हैरैगो॥
नाहिने नंद को मंदिर ह्यां, वृखभान को भौन कहाँ जकती हो।
हौं ही अकेली तुहीं कवि देव जू, घूँघट ते केहि को तकती हो।
मेंटती भारी भटू केहि कारन, कौन की धौं छवि सों छकती हो।
काह भी है? कहा कहौ? कैसी हो? कान्ह कहाँ है? कहा बकती हो?

नेवाज—

सुनती हौ कहा भजि जाहु धरै', विधि जाहुगी मैन के बानन मैं।
यह बंसी नेवाज भरी बिख सों, विख सी बगरावती प्रानन मैं॥
अबहीं सुधि भूलिहौ भोरी भटू? भमरौ जनि मीठी सी तानन में।
कुलकानि जो आपनी राखी चाही दै रहौ अंगुरी दोउ कानन में॥

रसखान—

जो मुसलमान से परमवैष्णव हुआ। जिनके विषय में कहा गया है, कि—

इनि मुसलमान हरि जनन पै कोटिन हिन्दुन वारियै।
मानुख हों तो वही रसखान बसौं मिलि गोकुल गांव के ग्वारन।
जौ पसु हो तो कहा बस मेरो, चरौं नित नन्द की थेनु मझारन॥