पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 2.pdf/४३

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ऋतु वर्णन

तिथि श्रोम लौ परे रहैं तन प्रान॥" और फिर 'लोग अक्सर मेरे जीने का गुमाँ रखते हैं' जिससे न मारा गया स्वयं स्वामी को क्लेश उठाना पड़ा क्यों न कृत्रित कहा जाय। जैसे किसी देशाधीश के प्राप्त होने से देश का रङ्ग ढ़ङ्ग बदल जाता है तद्रूप पावस के आगमन से इस सारे संसार ने भी दूसरा रंग पकड़ा भूमी हरी भयी होकर नाना प्रकार की घासों से सुशोभित भई, कि मानो मारे मोर के रोमांच की अवस्था को प्राप्त भई, सुन्दर हरित पत्रावलियों से भरित तरू गनों की सुहावनी लताये लिपट लिपट कर मानों मुग्धा मय मुखियों को अपने प्रियतमों के लिये अनुरागालिङ्गन की विधि बतलाती। इनसे युक्त पर्वतों के शृंगों ने मानो हरित कंचुकी से आवेष्टित युवतियों के कलित ऋटोर कुचका अनुकरण किया, सुन्दरी दरी समूह से स्वच्छ श्वेत जल प्रवाह मानों पारा की धारा और बिल्लौर की ढार को तुच्छ कर जुगल पाव की हरी भरी भूमि कि जो मारे हरेपन के स्यामता की झलक दे आलोक की शोभा लाई हैं, बीचोबीच माँगली काढ़ मन माँग लिया और पत्थल की चट्टानों पर सुम्बुल अर्थात् हंसराज की जटावों का फैलना विथरी हुई लटों के लावण्य का लाना है कि जिन्हें दुष्ट पशु न चर ले रखवाली के लिए कन्दराज्यों में केहरी गुर्राहट का भयङ्कर नाद करते हैं, जिसे सुन मत्त मातङ्गमाला चिवाड़ती हुई भागती सन्मुखस्थ वृक्षों को तोड़ती वन में घुसती, कि जहाँ शूकर को गुरगुराते देख शेर चटक कर चढ़ जाता, और चीते को दौड़ाते रीछ वृक्षों पर भी चढ़ जाते; कहीं नीलगाय की झुण्ड आती, कहीं घोड़े रोज़ की फौज़ जाती, नदियों के ऐसे कुल कछार और पुलिनों में कि जिसके सघन वृक्ष समूह स्वादिष्ट मिष्ठ फले और सुन्दर रङ्ग तथा सुगन्ध से युक्त फूले से फबे हैं, उन पर बैठे हुए लंगूरों की लम्बी और सजीली पंछे लटक रही हैं और ऊपर चोटियों पर जिनके नाना प्रकार के विहङ्ग भाँति भाँति की सुहावनी बोलियाँ बोलते मानों फलों को चख उनके स्वाद का बर्णन कर रहे हैं। कहीं कलित कुल कलापी कुल की कूक और नृत्य, कपोत, कीर, कोकिल, स्यामा; मैना हरेवा, हरदी, हारिल, भृङ्गराज, दहिअर, लाल, मुनिया, तूती, कुमरी, माता, चकोर, चातक की चहँकार और किलकार से कूजित मानो ईश्वर के चिड़िया खाना (बिहङ्गालय) की गौरय जता चित्त चोर लेते, और बीच की बेकीच हरी और कोमल दूर्वानों से सुशोमित भूमि में कुरङ्गी और सारङ्ग समूह अर्थात् कस्तूरी वा स्याम मृग और बारहसिंघे इत्यादि अपने अपने मृग वत्सों से घिरे चरते, और पङ्कज बन में टहलते, मराल मन्डली और सारस समूह