जाये सो जीये नहीं जिये तो बौरा होय॥
कबीर—द्वार धनी के पड़ रहैं धक्का धनी का खाय।
एक दिन धनी नेवाज ही जौ दर छोड़ि न जाय॥
कहते हैं करते नहीं वे भी बड़े लबार।
अन्त फजीहत होयंगे साहेब के दरबार॥
गीतें जैसे कबीर—
कंकड़ चुन चुन महल उठाया लोग कहैं घर मेरा है।
ना पर मेरा ना घर तेरा चिड़िया रैन बसेरा है॥
जग में राम भजा सो जीता या जग।
कब सेवरी कासी को धाई कब पढ़ि आई गीता।
जूठे फल सेवरी के खाये तनिक लाज जहिँ कीता॥
सूरदास।
अँखिया हरि दरसन की प्यासी।
बिन देखे वह सुरति साँवरी मन में रहत उदासी॥
तुलसीदास।
जै जै भागीरथ नन्दनि मुनि चैचकोर चंदिनि।
सुर नाग बिबुध बदिन जै जन्हु बालिका॥
जै जै जग जननि देवि सुर नर मुनि असुर सेवि।
भक्ति मुक्ति दाइनि तब चरन कालिका॥
बाबू हरिश्चन्द्र।
सांझ सवेरे पंछी सब क्या कहते हैं कुछ तेरा है।
डंका कूच का बज रहा मुसाफ़िर चेतो रे भाई॥
अथवा—
अग्नि वायु जल पृथवी सब इन तत्वों ही का मेला है।
इच्छा कर्म मयोगी इंजन गारड आप अकेला है॥
जीव लाद खींचत डोलत तन स्टेशन झेला है।
जयति अपूरब कारीगर जिन जगत रेल को रेला है॥
ठुमरी।
आ जा सँयालया गले लगा लूँ रस के भरे तेरे नैन रे।
रेखता और लावनी प्रायः इसी भाषा में बनाई जाती है, यदि उस में अप्रचलित पारसी और अरबी के शब्द न आवै, तो वह भी नागरी ही है।