पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 2.pdf/४३९

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भारतीय नागरी भाषा

नजीर-आगरे वाला—

जो और को फल देवेगा वह भी सदा फल पावेगा।
गेहूँ से गेहूँ, जौ से जौ, चाँवल से सवल पावेगा॥
जो आज देवेगा यहां, वैसाही यह फल पावेगा।
कल देगा, कल पारेमा, कल पावेग, कल पावेगा॥
कलजुग नहीं करजुग है यह, वाँ दिन को दे और रात लो।
क्या खूब सौदा नकद है, इस हाथ दे उस हाथ ले॥
अथवा—हर इक मकाँ में जला फिर दिया दिवाली का।
हर इक तरफ़ को उजाला हुअा दिवाली का॥

लखनऊ का प्रसिद्ध कवि आतिश—

नसीमे नौ गद्दारी की तरह पाये हो गुलशन में
तमाशाए गुलो सवा सनोवर देखते जाओ।

दहन पर हैं उनके गुमाँ कैसे कैसे। कलाम आते हैं दर्मियाँ कैसे कैसे

नासिख—

काविशे नाम दूर हो मेरे दिले वीरा से क्या
खार आते हैं कहीं सहरा का दमाँ छोड़ कर।
लगा दे शोलए आरिज़ से गर वह भाग गुलशनमें
कबाबी सीख समझे बुलबुलै शाखे नशेमन को।
वह अकमीर आतिशे ग़म है कि अपनी आहि सोजा ने
तलाई एक दस में कर दिया जंजीर आहन को॥
आवाज़ है मानिन्दे मज़ामीर गले में।
तहरीर है गोया तेरी तकरीर गले में॥

पं॰ दयाशङ्कर नसीम—

हर शाख में है शिगूफा कारी। समरा है कलम का हमदे वारी॥
नसीन इस चमन में गुलेटर की सूरत। फटे कपड़े रखते हैं पर्दा तुमारा॥

मीर हसन की कविता अवश्य ही सरल और सरस है, जैसे,—

मुसाफिर से भी कोई करता है प्रीत।
मसल है कि जोगी हुए किसके भीत॥
बरम पंदरद या कि सोलह का सिन।
मुरादों की रातै जवानी के दिन॥