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प्रेमघन सर्वस्व

 

'नमक' पठायो भई तमस्सुक की जब तलबी॥
पढ़त 'सुनार' 'सितार' 'किताब' 'कबाब' बनावत।
"दुआ" देत हू 'दगा' देन को दोष लगायत॥
मेम साहिबा 'बड़े २ मोती' चाह्यो जब।
बाड़ी २ मूली पठवायो तसिल्दार तब॥
उदाहरन कोउ कहँ अगिया के सकै गनाई।
एकहु सबद न एक भांति जन जात पढ़ाई॥
दस औ बीस भांति सो तो पढ़ि जात अनेरे।
पढ़े[१] हजार प्रकारहु सों जाते बहुतेरे॥
ज़ेर ज़बर अरु पेस स्वरन को काम चलावत।
बिन्दी की भूलनि सौ सौ बिधि भेद बनावत॥
चारि प्रकार जकार, सकार, आकार तीन विधि।
होत हकार, तकार, यकार, उभय विधि छल निधि॥
कौन सबद केहि बरन लिखे सो सुद्ध कहावत।
याको नियम न को लिखित लेख लखि आवत॥
यह विचित्रताई जग और ठौर कहुं नाहीं।
पँचमेली भाषा लिखि जात बरन उन माहीं॥
जिन से अधम बरन को अनुमानहुँ अति दुस्तर।
अवसि जालियन सुखद एक उर्दू को दफतर॥
जिहि तें सौ सौ सांसति सहत सदा बिलखानी।
भोली भाली प्रजा इहां की अतिहि अयानी॥
भारत सिंहासन स्वामिनि जो रही सदा की।
जग में अब लौ लहिं न सक्यो कोऊ छबि जाकी॥
जासु बरनमाला गुन खानि सकल जग जानत।
बिन गुन गाहक सुलभ निरादर मन अनुमानत॥
राज सभा को अलग कई सौ बरस बितावत।
दीन प्रवीन कुटीन बीच सोमा सरसावत॥
बरसावत रस रही ज्ञान, हरि भक्ति, धरम नित।
सिच्छा अरु साहित्य सुधा सम्बाद आदि इत॥


  1. भारतेन्दु बाबू हरिश्चन्द्र ने एक शब्द को १००० प्रकार से पढ़ा जाना सिद्ध किया है।