पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 2.pdf/४५२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४२०
प्रेमघन सर्वस्व


कितनों का कहना है कि हमारी भाषा में अब जो कुछ नये ग्रन्थ बने भी हैं उनमें प्रायः अनुवाद की संख्या अधिक है, किन्तु क्या अनुवाद कोई वस्तु नहीं और क्या इससे साहित्य को कुछ लाभ नहीं पहुँचता? ऐसी कौन सी उन्नत भाषा है कि जिसमें अनुवाद की अधिकता नहीं है। जब तक दूसरी दूसरी भाषाओं के उत्तम और अनूठे ग्रन्थों का अनुवाद न हो किसी भाषा का स्थिर महत्व स्थापित ही नहीं हो सकता। अंगरेजी आदि विदेशी और बँगला आदि स्वदेशी भाषाओं के महत्व का अधिकांश आधार अनुवाद ही है। हाँ अनुवादक और उसका मूलग्रन्थ अच्छा होना अवश्य चाहिये। व्यर्थ ग्रन्थों का अनुवाद तो निन्दनीय हुई है। हमारी भाषा को विविध भाषाओं के सदग्रन्थों के अनुवाद की अभी बड़ी आवश्यकता है, संस्कृत और अङ्गरेजी के अतिरिक्त स्वदेशी भाषाओं में भी अनुवाद की उत्तमोत्तम सामग्री भरी पड़ी है जिसका संचय करना बहुत ही आवश्यक है।

अस्तु, महाशयो! आप लोगों में से जो अपनी भाषा के उद्धार के अर्थ उद्योग तत्पर हुए हैं उनका सर्व प्रथम यही कार्य है कि वे अपने उदासीन भाइयों को उपेक्षा की निद्रा से जगाये और अपने स्वत्वों की रक्षा के अर्थ तत्पर करें। शिक्षा के सुधार का प्रश्न सबसे अधिक महत्व का है उसके अर्थ आपकी प्रथम चेष्टा होनी चाहिये।

क॰—हिन्दी टेकस्टबुक कमेटियों में अपने सुयोग्य प्रतिनिधियों के प्रवेश का यत्न कीजिये और करते ही चले जाइये। उसके वर्तमान सुयोग्य सदस्यों और अन्य विद्वानों से सहायता लीजिये।

ख॰—केवल गवर्नमेण्ट ही के आसरे पर न रह अपनी भाषा के जिसमें संस्कृत अङ्गरेज़ी के संग अपनी भाषा की वास्तविक शिक्षा का प्रबन्ध कीजिये।

ग॰—ईश्वर की कृपा से जब आपका काशी हिन्दू विश्व विद्यालय खुले तो उसमें अपनी भाषा की उचित और प्रौढ़ शिक्षा का प्रबन्ध कीजिये।

घ॰—खेद का विषय है कि भारत भास्कर महामान्य श्रीमान् गोखले महाशय का शिक्षा सम्बन्धी प्रयास न हो सका, किन्तु हर्ष का विषय है साम्राज्य शिक्षा प्रसार का दृढ़ संकल्प कर उद्यत हुई है; ऐसे समय उस शिक्षा के सुधार और उसको यथोचित लाभप्रद बनाने में यत्नवान हूजिये और साम्राज्य की सहायता कीजिये।