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संयोगिता स्वंयम्बर और उसकी आलोचना

कवि हर जगह चहूँआन लिखता है। परन्तु प्रचलित और यथार्थ में शब्द चौहान है, यदि वह पृथ्वीराज रासो का प्रमाण दे तो उसमें चहूँआन चोओन और चोहान भी काम में लाया गया है। "अब करनाटकी देश पर चढ़ि चल्यो चहुाँन "योंही चढ्यों सुबर चहुबान बीर क्रन्नाट देश पर" "फिर, लैहूँ सुनि सुविहान सुनै ढीली सुर तान लुयूथि पार पुंडीर भीरपरि है चोहान" फिर पुस्तक का नाम ही पृथ्वीराज चौहान रासो है॥

[द्वितीय गर्भाङ्का] जयचन्द की सभा। इसमें जो चन्द और जैचन्द की बात कराई गई हैं बहुत ही बेहूदा और अनचित मालूम होती हैं। पहिले तो वेमौके कवि का गाना फिर जैचन्द॰ "कहहु बरद निज वृत्ति" (वृत्ति नहीं है वृत्त यों ही पृष्ठ २२ में) जैचन्द॰ "काव्य के शत्रु तारापति चन्द को ले जाकर आराम से हरा"। यह तो साफ़ गाली है, श्लेष कैसा? फिर सेवक के वेश में पृथ्वीराज का प्रवेश और फल शून्य। करनाटकी का आना और बे-पूछे बे-मौके फ़जूल गाना ग़ाना [पृष्ट २१] "सुनिये कृपाल चित्त दे दुःख की कथा हमारी छुटा स्वदेश जब से तब से कलेश भारी! अतिशय दृषाति होवै लूकी लपट प्रजारी। शशि में सुधा निरखि के चाहे न क्यों दुखारी"। कविता और शब्दाशुद्धि को छोड़कर भी यह किससे कहती है और क्या बकती है हमारी समझ में इस अंक के रखने की कुछ आवश्यकता ही न थी, यदि थी तो पृथ्वीराज के प्रगट होने में मजा था। फिर यह क्या कि सब परीक्षा हो भी चुकी और सन्देह बना है।

[तृतीय गर्भाङ्क॥ चंद के डेरे] इस गर्भाङ्क का भी कथा भाग व्यर्थ है क्योंकि इससे भी कोई कार्य साधन नहीं होता अर्थात् पृथ्वीराज और उसके सरदारों की फ़जूल' बातचीत "महिमानी का सामान" करनाटकी लेकर आई योंही जैचंद का प्रवेश और उससे बातचीत, जैचन्द की आता से उसकी सेना के आक्रमण की खबर सुन नायक और उसके सैनिकों का युद्ध में उत्साह का प्रदर्शन वर्णनीय विषय है। अशुद्धियाँ इसमें बहुत ही अधिक हैं परन्तु उन्हें न लिख कर कुछ नमूना आगे का दिखलाता हूँ—पृ॰ २४ पृथ्वीराज क्या बहुत मृग मृगेन्द्र का मुकाबला कर सकते हैं (यह शुद्धि और यह अभिमान और यह डींग) चन्द—"अभी तो आप जयचन्द के दरबार में मेरी गंगाजली उठा कर जाने पाये हो" (क्या अच्छी मर्यादा की बातचीत है और क्या ही नायक के उचित कार्य का व्याख्यान है, गंगाजली के बदले पानदान का प्रयोग कदाचित् कवि के दृष्टि में अपमान का कारण