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प्रेमघन सर्वस्व

है) करनाटकी [पृ॰ २६] दादरा॥ "हमसे न पूछिये जी सुनने में क्या धरा है" फिर आप से न पूंछे तो मालूम कैसे हो कि सुनने में (०) क्या धरा है) "गंगा के तीर हूबस चातक विपत परा है, ताकी तृषा कुघन बिन काहूने ना हरा है" (क्या चातकी आना स्त्री के लिये अनुचित था?) "पान लेने को जैचन्द हाथ बढ़ाता है तब पान देती बार पृथ्वीराज उसके हाथ में एक में एक झटका मारता है कि जिससे वह गिरते-गिरते मुश्किल से सम्हल सकता है, पीछे मन्त्री को पान दिया जाता है" (हम नहीं जानते कि इससे क्या फल सिद्धि हुई, कदाचित कवि ने नायक के प्रकाश होने का बही मौका अच्छा समझा। हमारी जान तो द्वितीय गर्भाङ्क में यदि नायक नहीं प्रगट हुआ तो द्वितीय अंक में अर्थात् नायिका के संयोग में उसका प्रगट होना और सेना का आक्रमण वहीं उचित होता।

अब और देखिये कि सेनाक्रमणवृत्त सुन॰ [पृ॰ ३० पृथ्वीराज—अच्छा हमारे शस्त्र ला॥ कन्ह॰ साथ के लिये कौन कौन तैय्यार हो। पृथ्वीराज—"सूरबीर रण को बढ़त ढूंढे? किसका साथ। साचे साथी ईस अरु हिया कटारा हाथ"। (वाह क्या कविता है) अब देखिये कि यह तो बाते हैं और कोई भी नायक को रणभूमि में जाने से नहीं रोकता, और न वह गया हम नहीं जानते कि इससे बढ़कर अनुचित और क्या होगी। [पृ॰ ३२] पृथ्वीराज! "चलो हम भी चल कर लंगरी राय की कुमक देने के लिये और सेना तैय्यार करें" अब सेना तैय्यार करने की कैफ़ियत आगे देखिये—

द्वितीय अंक। स्थान संयोगिता के महलों के सन्निकट गंगातट इस गाङ्क में दम्पति का प्रथम समागम वर्णित है। जहाँ तक हम सोच सकते हैं बहुत ही बेहूदे तरह पर दोनों का मिलना हुआ। अचानक आये हुये नायक के पास मोती का थार भेजना, और ऐसी बातें करना तो वेश्या से भी असम्भव है,जैसे [पृ॰ ३३] करनाटकी। राजनन्दिनी! आप तो युद्ध देखने के लिये छत पर जाती थी यहाँ कैसे खड़ी हो रही' (क्या अनुस्वार दोनों जगह गायब)।

संयोगिता॰ "तुमने इस वीर को देखा इसका रूप कामदेव से, मधुरिमा चन्द्रमा से, तेज सूर्य से और शोभा इन्द्र से मिलती है, पर इस सबके समूह से हूबहू (हूबहू राजाशिवप्रसाद के कलम का आनन्द) "मेरे ध्यान की"—(वल्लाह रेखा से क्या दिल्लगी है)"भला जो थे पृथ्वीराज हो तो