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प्रेमघन सर्वस्व

(नायक) समर से चित्त चुरा संयोगिता के सदन में था सिकुड़े थे, जब यहाँ गहिरी प्रीति की चोट चलने लगी, तो नीति उपदेश कर चल भागना चाहा, बल्के चलेही गये। चलते समय का संयोगिता का गाना और बतलाना रंडाओं के और बिलबिलाने से कम नहीं, हालांकि शेक्सपियर के हेनरी आठवें से छाया लिया परन्तु अत्यन्त भ्रष्ट रीति से भ्रष्ठ किया।

तृतीय अंक। १ ग॰। चंद का डेरा। यह गर्भाङ्क कवि ने वीर रस का उत्साह दिखलाने के लिये लिखा है। आदि में चचा भतीजे की मर्यादा विरुद्ध बातचीत है. फिर नायक का उत्साह-पृथ्वीराज (पृष्ठ ५५)। "सेना तत्काल तैय्यार हो और श्राज ऐसा धुंआधार युद्ध करें जिससे भूमि थर्रा उठे, दिगपाल डगमगाने लगे (क्या अच्छा केवल सेना के भरोसे मन की खिचड़ी पकाना है) "भूतेश्वरी की मुंडमाल पूरी हो जाय, चामुंडा नाच उठे, कबन्ध युद्ध करें और रुधिर की नदी बह निकले। (यह कवि का स्वभाव है कि जैसे संयोग के पहिले ही वियोग का वर्णन किया था, इसी तरह वीर रस और रौद्र के पहिले ही वीभत्स ही गा चले) गोयन्दराय—आप"पगिर्राज बन कर सब की रक्षा कीजिये, हम भी अपनी लकुटिया का सहारा लगाने को तैय्यार हैं।" (यह तो वीरों का उत्साह है) पृथ्वीराज [पृष्ठ ५६] "तो कृष्ण की तरह यहाँ कंस से सब की रक्षा होगी" (सच है आप से क्या होना है)। पंडितराज जगन्नाथ जिन्होंने कुत्सित कवि रूपी चोरों के डर से अपने उत्तम कवित्वरन की रक्षार्थ भामिनी विलास नाम संग्रह ग्रन्थ रूपी संदूक बना कर और उसमें वे रत्न भर कर कसम और गाली की कुंजी से बन्द कर गये थे, आप ने उसे भी तोड़ कर लूट लिया अर्थात्-"दिगन्ते. श्रूयन्ते मदमलिनगंडाः करटिन: का दिग्गज विशेष व्यापक विदेश। हाथिनी मलीन अबला अधीन, (नक्कल को अकल क्या? ऐसा सुनते थे पर उसका भी यह हाल है)। पृथ्वीराज'शाबास शाबास!' (स्मॉबास! शाबाश आनन्द रघुनन्दन नाटक के मुहाबिरे) जरा भूषण के कवित्त को "त्योंही मलेच्छबंस पर शेर शिवराज है" को आपने [पृष्ठ ५६] "तैसे रिपु वंस पर आज पृथ्वीराज है" (लिखकर हजम कर गये) बहुत प्रसिद्ध कवत्त जान कर इमान्दारी दिखलाने को आप टिप्पणी में लिखते हैं कि मूल कविने (मूल कवि क्या?) शिवराज लिखा है (फिर आपने पृथ्वीराज क्यों लिख दिया)। सच तो यह है कि यह आप की आदत पड़ गई है क्योंकि भारत भिक्षा से—'मृदंगादि बाजे बजाओं! बजाओं" इसे भी ले [पृ॰ ६०] अरे रो सिंदूरा बजाओं"! तलवार निकाल कर बुमाते हुये सब नेपथ्य में