पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 2.pdf/४७२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४४०
प्रेमघन सर्वस्व

हो जैयचन्द को पृथ्वीराज और संयोगिता को बुला कर ब्याह कर देना पड़ा, और किसी तरह किस्सा खत्म हुआ।

अब देखना चाहिये कि गोयन्दराय के जिम्मे दो काम सयुर्द हुआ, एक या दो तो सूर सामन्त का उसी में बिदूषक भी बनाये गये। परन्तु काम विदूषक का कहीं नहीं झलका। नाम न केवल गोबिन्दराय का गोयन्दरद चौहान का चहुआन किन्तु संयुक्ता को संयोगिता लिख बिसमिल्लाही ग़लत कर डाला। हाहुलीराय ए लंगरी राय नाम अवश्य बिदूषक के काम की याद कराते हैं॥

निदान समालोचना बहुत बड़ी हो जाने से नाटककार के साधारण धर्म का आख्यान न कर हम लेख समाप्त कर के अपने मित्र ग्रन्थकर्ता और समालोचक समूह से यह प्रार्थना करते हैं कि यों मनमाना लेख न लिख मारा करें, विशेष कर सम्पादकों को इस पर विशेष ध्यान रखना चाहिये। क्यों कि उनकी सम्मति सर्वसाधारण को विश्वसित प्रमाण रूप होती है। उन्हें अपनी पक्षपात शून्य यथार्थ सम्मति प्रकाश करनी चाहिये चाहे ग्रन्थकर्ता रुष्ट क्यों न हो, जाय परन्तु चापलूसी और खुशामद सम्पादकों को कलंक का कारण है। हमारी कई समालोचनाओं पर क्रुधित हो अनेक ग्रन्थका ग्राहकों ने कादम्बिनी लेना बन्द कर दिया परन्तु उसके लालच वा हानि के कारण हम अपनी उचित और उदार सम्मति को प्रकाश करने से बन्द नहीं कर सकते।

अभी विगत मेध में एक माननीय मित्र रचित पुस्तक की समालोचना जो शुद्ध और यथार्थ रीति से की गई थी कोई उनका चापलूस बहुत कुछ उन्मत प्रलाप के उपरान्त यों धमकी देता है कि यदि आपने यों लिखा है, तो हम भी आप की कविताओं में दोष दिखलायेंगे और कादंबिनी की निन्दा करेंगे। परन्तु यदि वह हमारे सच्चे दोषों को प्रगट करैगा हम अपने दोषों को समझ उसे दूर कर लाभवान् होंगे। और अवश्य चित से उसके धन्यवादित होंगे, और यदि वे मिथ्या निन्दा करते हैं तो उससे हमारी कुछ हानि नहीं, इसी प्रकार इस समालोचना में भी जो कुछ अयथार्थ समझे, दृढतर प्रबल' प्रमाण पूर्वक प्रकाश करें उत्तर दिया जायगा। केवल अपनी भूल की हूल के दर्द की चिल्लाहट और बिलबिलाहट व्यर्थ न सुनी जायगी।