पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 2.pdf/४७५

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बंग विजेता की आलोचना

होता, क्योंकि नाविक अर्थात उपेन्द्रनाथ, इन्द्रनाथ, अर्थात सुरेन्द्र नाथ को अपना छोटा भाई जान कर भी चाहे इससे फिर प्रत्यक्ष भ्रातृ सम्बन्ध होने की आगामि में श्राशा न भी हो परन्तु फिर भी अपने प्रेम का बों खल्ली खुल्ला व्याख्यान करना कुछ अनुचित सा बोध होता है,

सोलहवां तथा सतरहवां परि॰] कमला का स्वभाव और उसकी दशा बहुत ही अच्छी तरह वर्णित है॥

इक्कीसवां तथा बाइसवां परि॰] महाश्वेता और सरला का कारागृह निवास, विमला का उन पर असीम कृपा प्रकाशन और सरला से सरल भाष पर्वक अभिन्न मैत्री का वर्णन है। परन्तु हम विमला और सरला का दध पानी के समान मिल जाना नहीं पसन्द करते क्योंकि महाश्वेता और सरला सी राजकुलाभिमानी, और शत्रुनाशन प्रतिज्ञा-प्रतधारिणी, राजमहि। और राजकुमारियों का चाहे वे कितनी हूँ पराधीनता में क्यों न हो तो भी यों मिल रहना एवं विमला का चाहे वह कैसी हू दयामय निष्कपट हृदय सरल स्वभाव की क्यों न हो पर अचानक शत्रुकुल के घर के गूढ मेद और सत्य गोपनीय वार्ताओं का व्याख्यान स्वभाव के विरुद्ध समम पड़ता है। विमला और मैना (पक्षी) की बातें बहुत ही उचित और विचित्रता संयुक्त हैं और इसी प्रकार सरला का निज गृह में स्वप्न का भान होना।

(तेइसवां परि॰) यहां इन्द्रनाथ विषयक वार्ता होना मुझे नहीं पसन्द है, और महेश्वर के मन्दिर से यहाँ तक विमला को इन्द्रनाथ का प्रेम मेरी जान वर्णनीय नहीं है, और सरला द्वारा विमला को शोच होना भी अच्छा नहीं यदि छिपा प्रेम पीछे प्रगट होता तो भी अनुचित न होता। हमारी जान विमला और इन्द्रनाथ का मिलना मुंगेर में अच्छा होता जिसकी सूचना १५ वे परिच्छेद में आती है एवं २५ परिच्छेद में भी।

[पच्चीसवां परि॰] समथ और समा एवं स्वाभाविक सौन्दर्य वर्णन के साथ बिमला के शोकाक्रान्त हृदय का चित्र अच्छा उतरा, अन्तिम भाग में पूर्व कथा की सूचना भी उत्तमोत्तम है।

[तीसवां परि॰] सतीशचन्द्र की मृत्यु बहुत उचित लिखी गई, और उसके कण्ठपाणावस्था की वार्ता भी भाव भरी हैं।

[एकतीसवाँ परि॰] ग्रन्थकार ने किस सौन्दर्य से पूर्णिमाशी का अमावस्या बनाया है। सरला की उत्कंठा भी अच्छी दिखाई परन्तु इन्द्रनाथ के सम्मे