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बंग विजयता की आलोचना
कर बोली कि 'तैं कैसी बौर दिया है'। स्वामी घर में हैं, तिस पर वृद्ध स्वामी इतने तड़के हमको कैसे छोड़ेगा। तुझको क्या माता ने विवाह किया नहीं सारी रात चिन्ता में नींद नहीं आती।
अन्त को अब हम अपने परमादरप्रिय ग्रन्थकर्चा के धन्यवादित और अपने मित्र अनुवादक के कृतज्ञ होकर समालोचना की समाप्ति करते हैं।
बंगविजयता की समालोचना
मान्यवर श्रीयुत्त बाबू रमेशचन्द्रदत्त जी॰ सी॰ यस॰ प्रणीत जिसे हमारे मित्र श्री बाबू गदाधर सिंह शिरिश्तेदार कलक्टरी मिरज़ापुर ने बंग भाषा से नागरी भाषा में अनुवाद किया है, मूल्य १) मात्र उत्तम काग़ज़ पर टाइप के सुन्दर अक्षरों में बारहपेज़ी फार्म के आकार में २७८ पृष्ठ का अन्थ है। अवश्य हिन्दी रसिकों को अन्थकर्ता से मँगा कर देखना चाहिए।