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प्रेमघन सर्वस्व

है, विशेषकर उस अवस्था में कि जब उसने श्रम कर एक ग्रन्थ रूपी धान्य को कूड़ा करकट से अलग करके बतलाया कि इसमें इतना अंश उत्तम और इतना अधम है, तो पुरस्कार के पलटे वह गाली पाये वा अनुचित रीति पर ग्रन्थ कर्त्ता से वाद विवाद कर अपना अमूल्य समय नष्ठ करें और साथ ही दूसरी २ हानियों को भी सहे! सारांश किसी न्यायी और सुयोग्य समालोचक को लाभ केवल उस पुस्तक के अतिरिक्त कि जो उसने पाई और कदापि कुछ नहीं है वरञ्च कभी २ हानि और कहीं कई प्रकार की कठिनाइयां, परन्तु सद्ग्रन्थकर्ताओं को अवश्य अच्छे समालोचकों से बड़ा लाभ होता है, जैसा कि कविकुलकुमुदकलाधर श्री कालिदास का कथन है, कि—

"तंसन्तः श्रोतुमहर्हन्ति सदसम्संयक्ति हेतवः। हेम्नः संलक्ष्यते ह्मग्नों विशुद्धिः श्यमिकापि वा॥

अस्तु हम अभी ऊपर लिख आये हैं किन हमारी भाषा में विशेष समालोचना योग्य पुस्तके ही पाती और न नागरी के समाचार पत्र उनकी यथार्थ समोलोचन हीं करते हैं, वरञ्ज वे केवल प्राप्ति स्वीकारही मात्र करते, व एकाध शब्द प्रशंसात्मक, भी लिख देते, चाहे वह उसके भी योग्य हो अथवा न हो, परन्तु हमारी समझ में यह परिपाटी बहुत ही निकृष्ट हैं। यह क्या कि—सेत २ सब एक से कनक, कपूर कपास?" उनका यह मुख्य कर्तव्य है कि वे ठीक २ और यथावत् गुण और दोष को तुल्य प्रकाशित करें, सत्कवि और सुयोग्य लेखकों के श्रम को सराहे उनके यश को फैलाये, उत्साह बढ़ाये, दुष्टपद्यपूरक और व्यर्थं लेखनी घिसने वालों को उनके अयोग्य और व्यर्थ बढ़ते अनर्गल उत्साह को दबाये एवम् श्रमं परं पश्चाताप कराये और सिखलाये कि तुम ऐसा अनुचित साहस अब आगामि से कदापि मत करो, एवम् अपनी भाषा रूपी वाटिका की उसी भांति रखवाली करें कि जैसे एक सुचतुर माली खर और कंटिलकंटकमय 'वृक्षों को निकाल सुन्दर सुगन्धित पुष्प और सुस्वादु फलवान तरु लताओं के बालबाल' को बारि पूरित और उनकी समयोचित सेवा करता है, कांक और उलूकों को फलों पर चोंच चलाने से वारण करता और भ्रमरों को मकरन्द पान करते देख प्रमुदित होता है। सम्पादकों के इस असावधानी वा त्रुटि से सर्वसाधारण वा पत्र-पाठकों की भी एक बड़ी हानि होती अर्थात् वे पंत्रों की समालोचना से यह नहीं निश्चय कर सकते कि अमुक ग्रन्थ कैसा है, इसी भाँति वे कभी २ झूठी प्रशंसाओं से