पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 2.pdf/४८६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

 

उर्दू बेगम की आलोचना

उर्दू और हिन्दी भाषाओं के सम्बन्ध में एक कहानी जो उपन्यास की भाँति लिखी गई है। इसके ग्रंथकर्ता बा॰ भगवानदास बी॰ ए॰ होने के अतिरिक्त एक योग्य और हमारे परिचित सज्जन हैं, तथापि जो कि वह स्वयं अपना नाम छिपाते अतएव हम भी उसे नहीं बताते हैं। पुस्तक आठपेजी रायल आकार के १३३ पृष्ठों की है। काग़ज़ तथा छपाई भी अच्छी, मूल्य॥) और प्रबन्ध भी अच्छा है।

पुस्तक की मुख्य भाषा बोल चाल की उर्दू है। कहीं-कहीं नागरी भाषा भी हिन्दी के वार्तालाप में आगई है। कुछ स्थानों पर भोजपुरी हिन्दी भी लिखी गई है जो अधिक अशुद्ध है। यद्यपि और भी स्थानों पर कई प्रकार की अशुद्धियाँ रह गई है परन्तु अनेक स्थानों की लिखावट बहुत अच्छी है। व्यंग्य और विनोद प्रायः अधिकतर स्थानों में वर्तमान हैं जिससे कहीं कहीं पढ़ने वालों की हँसी नहीं रुकती। कथा का प्रारम्भ बहुत उत्तम रीति से हुआ है। कविता का अंश भी कहीं कहीं प्रकाशित होता और इसके गुण भी दिखाई पड़ते हैं। छन्द भी कई उर्दू और कई हिन्दी के मिलते हैं जिनमें कई अच्छे भी हैं। किसी किसी में नयापन जिन्हें कदाचित कुछ लोग अरुचिकर कहेंगे रक्खा गया है। और कहीं कहीं अश्लीलता भी आगई है। कहीं विद्या विषयक बातें और कहीं शिक्षा का अंश भी आया है और प्रायः वाक्यों में तुकबन्दियाँ की गई हैं। सारांश पुस्तक एक प्रकार से अच्छी कहने योग्य है। प्रणेता का यह प्रयत्न प्रथम है, यदि वह नागरीभाषा में अपनी लेखनी से आगामी में और कार्य लेंगे, तो अवश्य ही निज मातृभाषा का उपकार कर सकेगे। अस्तु कुछ अंश उस ग्रंथ से पाठकों के। परिज्ञानार्थ उद्धृत भी कर देते हैं—

पृष्ठ १—"एक लम्बी डाढ़ीवाले मियाँ उस सड़क पर से गुज़रे। उनके पैरों में काबुली जूते और उनके सिर पर अम्मामा था। उनके बदन पर लम्बा कुर्ता था और नीचे सरह पायजामा था।" ◎ ◎ ◎ (उर्दू बेग़म) "वह सरापा साँचे में ढली थी और उसका मुखड़ा चाँद का टुकड़ा मालूम होता था। हालाँ कि ग़ुर्बत की वजह से उसका कपड़ा वोसीदः था लेकिन उसके