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उर्दू बेगम

अन्दर उसका गोरा चिहरा ऐसा पोशीदः था जैसे गुदड़ी में लाल या अब में हिलाल" ३१ पृ॰,

राजत माल विसाल रसाल सो त्यों सहतूत सी भौंह सुहाई। सुन्दर सेब से गोल कपोल बदाम सी आँख हैं देत दिखाई। दाड़िम दन्त औ ओठ खजूर से नासिका कदली सी मन भाई। 'तौ मुख चन्द सुधा सी स्लवै छितपे नित सेवन की मधुराई।

पृष्ठ ३३—"इससे तो ओठों की मिसाल लाल मिरची से देना बेहतर होता। याने 'इन्द्रायण' के फल की इसलिये मिसाल दी है कि देखने में तो साशकों के लब बहुत खुशनुमा मालूम होते हैं लेकिन चखने से ज़हर की तासीर रखते हैं।

पृष्ठ ४७—पेशकार हुजूर उर्दू ही की खराबी से तो यह गलती हुई। उदू का लिखना ऐसा है कि अगर बैलों के नुक्कते बदल दें तो तबलों होजाय और कसबियाँ के नुकते बदल दे तो किश्तियाँ हो जाय।

क॰ सा॰ (मुस्कुरा कर) सेकट्टर साहेब बोलटा है कि इन कसबियों पर डाट (नुकतः) लगा कर इनको क्रिस्टियाँ बना दो हम इस पर सवार होगा।

४९ पेशकार—हुजूर इनमें डाट लगाने की ज़रूरत नहीं है ये इसी तरह सवारी के काबिल हैं।

पृष्ट ७६—इस बादिये खुशनुमा के अन्दर लहराता है धान का समन्दर। मैंदा में पहाड़ जो खड़ा है। दरया मैं जहाज सा अड़ा है।

मस्तूल "पः" उसके दो मुछन्दर। इन्सा की तरह खड़े हैं बन्दर।

तो॰ रा॰—और अगर आप की शेरनी के पीछे यह शेर जोड़ दिया जाता तो अच्छा जोड़ा हो जाताः—

उन बन्दरों के साथ बन्दरानी। कपड़ा पहिने खड़ी है धानी।

पृष्ठ ८१—"सित तालन टांकि सितारन सों पहिने तन धानन को पट धानी।

नदनालन को मनि मालन सों,
गिरि ऊँच उरोजनि धारि सयानी। मनभावन मोरन के मिस गावत,
सावन मास सुहावन जानी। महिमण्डल गोल हिडोल पै झूलत, हैं
नित भारत की महिरानी।