पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 2.pdf/४९८

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नागरी नीरद का पत्र परिचय

अनेकानेक धन्यवाद उस परमात्मा सर्वशक्तिमान सच्चिदानन्द धनस्वरूप को है! जिसकी कृपा कणिका के प्रभाव से यह शुभ अवसर मिला कि अाज चिरसमयाभिलषित मनोरथ के सिद्धि का समीर संचारित हो चला, और इस सरस पावस के सुहावने समय भद्रभाद्रपद मास' में जो तापत्रयहारी, बृन्दावनचारी, गिरिगोवर्द्धनधारी, ब्रजयुवतिजनमनहारी, आनन्द कन्द, भगवान श्री कृष्णचन्द्र के जन्म के कारण परम पवित्र और मंगलमय है, उसकी शोभा का हेतु जगतजीवनदायक नामाच्छादित नीरद समान निज प्रेभीमयूर मण्डली के मन मोहनार्थ आज यह 'नागरी नीरद, उमड़ आया।

जिसका न केवल यह आशय और सिद्धान्त है कि अपने चन्द चतुर, चातक चमू के चित्त को चुराकर ललचाये, वा आनन्दविन्दु प्रदान कर परमाल्हादित मात्र करै; वरञ्च ईश्वर ने चाहा तो आशा ऐसी ही है कि यथानामगुणयुक्ति 'कविवचनसुधा' और 'हरिश्चन्द्र चन्द्रिका' एवम् 'आनन्द कादम्बिनी' आदि के अभाव से मुरमानी सी नवलनागरीलतिका को निज लेख लालित्य सलिल वर्षा से हरी भरी लहलह और प्रफुल्लित कर दे। अथवा यों कहो, कि सर्वगुन आगरी कुमारी नागरी के उन अङ्गो का अपूर्व शृंगार कर सुसज्जित करे, कि जो अब तक सूने हैं, योही सुरम्य साहित्य के उन अमूल्य नवीनालङ्कारों से अलंकृत करे, कि जो स्वाभाविक मनोहरता के अतिरिक्त विशेष रूप से उसके प्रेमियों को सर्वथा वशीभत कर लेने में समर्थ हैं।

हमारे पाठकों में से अनेक जन कह बैठेंगे कि भाई नित्य ही नवीन पत्र प्रकाशित होते हैं, और चटपट अस्त भी हो जाते हैं, न उनका कोई नवीन उद्देश्य होता, और न वे यथार्थ रीति से मनोरञ्जक ही होते, प्रत्युत साधारणतः एक समाचार पत्र के साधारण धर्म के पालन में भी असमर्थ होते हैं फिर क्या समझ कर तुमें स्वागत दें" उनके प्रति तो यही निवेदन है, कि आप इसपर कृपा कटाक्ष रक्खें, क्या श्राश्चर्य कि इस नवीन नीरद की शोभा देख आप के लोल लोचन चालक बन जाये परन्तु बहुतेरे तो ऐसे हैं, जो चौंक कर चीखें मार चिल्लाने लगेंगे, कि