पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 2.pdf/५०१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

 

नीरद का नवीन वर्षारम्भ

भरित नेह नव नीर नित बरसत सुरस अथोर।
जयति अलौकिक घन कोऊ लखि नाचत मन मोर॥

श्रीमत् सच्चिदानन्दनधन जगदीश्वर को असंख्य धन्यवाद है, जिसकी कृपा से यह वर्ष सकुशल समाप्त हुआ, और सब प्रकार से निर्विघ्न यह नागरी नीरद, अपनी मधुर ध्वनि से निज प्रेमी मयूरमण्डली को प्रेमोदित करता रहा! अब आज से यह एक वर्ष का बालक हो, अपनी तोतली बातों से पुनः अपने ग्राहकों को विशेष प्रसन्न करने की अभिलाषा से, अत्यन्त नम्रता और प्रेम पूर्वक उसी परब्रह्म परमात्मा के आतिहरण युगल चरण कमलों में यह प्रार्थना करता है, कि वह अपनी असीम कृपा के क्रिश्चिदंश से सदैव इसकी सहायता करता रहे और इसके समस्त विघ्नों को हरता रहे। तद्पश्चात् अपने सुचतुर चातक तुल्य सच्चे अनुग्राहक ग्राहक गण, एवम् सुलेखक कलापि कदम्ब, और अनेक सुयोग्य सहयोगी समूह जिन्होंने यथायोग्य सहायता सम्पादन की, उनकी सेवा में भी अनेक धन्यवाद पुरःसर वर्षे भर की भूल चूक दोष और असावधानी की क्षमा प्रार्थना पूर्वक आगामी से और अधिक कृपा की विनय है।

पत्र विषय

इसमें तो सन्देह नहीं है कि नीरद ने अपने प्रथम विन्दु में निज प्रेमी मयूरों को प्रमोदित करने की जैसी कुछ आशा दी थी यद्यपि यथातथ्य उसका पालन न कर सका, तथापि समय २ पर जो सलिल प्रदान कर इसने नागरी लता को सिञ्चन किया, उसी से उसके अनेक हितैषी सन्तुष्ट हुये यह न्यून हर्ष का विषय नहीं है। नवीन बड़े लेख इस वर्ष में केवल दो प्रकाशित हुये, अर्थात्, पद्म में मङ्गलाशा वा हार्दिक धन्यवाद और गद्य गुप्तगोष्टी गाथा अनुवादाम्बुप्रवाह में, कुछ अंश "अनमोल बोल" महामतिः बेकन के एसे का, और 'स्वर्णकार के स्वर्णालङ्कार' गोल्ड स्मिथ का अनुवाद छपा। प्रेरित कलापि कलरव में भी अनेक उत्तम लेख छपे जिसके प्रधान लेखक पंडित वर श्री चन्द्रभूषण चातुर्वेद्य अनेक धन्यवाद के पात्र हैं। सम्पादकीय प्रबन्धों के अतिरिक्त अनेक अन्य सुलेखकों और मित्रों के अनेक सुन्दर लेख