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हमारा नवीन सम्वत्सर

व्यवहृत है, परन्तु उसका सम्बन्ध केवल पारस देश निवासी पारसी जाति मात्र से है, मुसलमानों से इससे कुछ सम्बन्ध नहीं है। यों ही मुसलमान लोग अपने अरबी महीना के सम्वतसर के आरम्भ में कुछ भी हर्ष प्रदर्शन नहीं करते, वरञ्च शोक। कट्टर मुसलमान सम्राट् बालमगीर ने जब यह समाचार सुना था, कि उसका पुत्र नौरोज़ में हर्ष प्रदर्शन करता, और खुशियाँ मनाता है, अत्यंत क्रुद्ध होकर राजकुमार को आगामि से ऐसा न करने का तीव्र आदेश दिया था।

पारसियों के नवीन सम्वतसर का प्रारम्म अर्थात नवरोज़ यानी फर्वरदीन मास के प्रथम तिथि को होता, अर्थात जिस दिन कि सूर्य मेष राशि पर आता है। सारांश यह कि वे हम लोगों के सौरमास वा संक्रांति के अनुसार ही अथवा सौर वर्षारम्भ से अपना वर्षारम्भ मानते हैं, तात्पर्य यह कि विदेशी अँगरेज़ लोग भी हमारे चान्द्र सम्वतसर का अनुकरण करने में बाध्य होते, और पारसी लोग सौर वर्ष को मानते हैं।

जानना चाहिए कि हमारे यहाँ कई प्रकार के वर्ष माने जाते हैं, और यही कारण है कि इस सुवृहत् देश के अनेक प्रांतों में एक ही सम्बत् एक ही प्रकार से नहीं माना जाता, वरञ्च अनेक प्रकार और भेद से बरता जाता है। जैसे कि ज्योतिष शास्त्र के सिद्धान्त शिरोमणि श्रादि ग्रन्थों में कालमान अर्थात् समय के वत्सरादि मेदों के प्रकार कहे गये हैं,—

"इत्थं पृथङ् मानव, दैव, जैव, पत्राक्षे, सौरेन्दव सावनानि। पत्र वा ब्राह्मं, च काले नवमं प्रमाणं ग्रहास्तुसाध्या मनुजै स्वमानात्।

अर्थात्मा—मानुष, दैव, वाहस्पत्य, पैत्र, नाक्षत्र, सौर, चान्द्र, सावन और वाह्य।

काल की संख्या वा भेद इस प्रकार है—

कि पलक गिरने में जितना समय लगता है, उसे निमेष कहते हैं। उसका तीसवाँ भाग तत्पर। और तत्पर का शतांश त्रुटि कहलाता है। योंही १८ निमेष की एक काष्ठा। तीस काष्ठा की एक कला तीस कला की एक घटी। दो घटी का एक मुहूर्त। ३० मुहूर्त का एक अहोरात्र—

यों ही एक दूसरा मत यह है; कि—प्रशस्तेन्द्रिय पुरुष का श्वासोच्छ्स 'काल, वा जितने समय में दस गुरु अक्षरों का उच्चारण होता है, उसे एक प्राण कहते हैं। ऐसे ६ प्राणों का एक पल, ६० पल की एक घटी, ६० घटी