पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 2.pdf/५२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२०
प्रेमघन सर्वस्व

क्यों न धारण क्रिया पर तो भी भीतरी आख़ोर से निरादर के भाजन हुए; इस दशा में शोभापुञ्ज गुम ललित वेष बनी आन्तरीय कटोरता के कारण, काला कर अपने करतर का फल पाकर चिटकने लगी जब देखा कि इसी रीति रत्ती रत्ती स्यामताई ले रत्ती (कोड़ेना) भी चिटका चाहती हैं कजा काई रंग में लपेटे फलों को खारदार जिरवख्तर पिन्हाया किन तो चिटके न चिड़िये चोंच चलावें। किवाँच ने किमाचीरंग की बानात को स्त्रोल में फलों को भर खुजली पैदा करने वाली सफूफा उस पर भुरभुराया बिछवाओं ने भी अपने पब्जे में चोखे काँटों का बिछुया लगाया।

न केवल पक्षी ही ऐसे सुखी हुए किन्तु धूलि के नाम भी न रहने से स्वच्छ सुशोभित भूमि, पर्वत, शृंग, गुफा, कन्दरा, दरी, कानन, कुञ्ज, कछार कूल, पुलिन, हरी घास, गुच्छ, गुल्म, कन्द मूल, फल, फूल, की अधिकाई से पशुबन्द भी आनन्दित हुए; और ससा, साही, शृगाल, लोमड़ी चरखे, लकड़व ध्येवृक, गैंडे इत्यादि तथा पूर्वोक्त पशु उस कुश, गडरा और खर के बीच चले जाते भी नहीं लखाते, कि जिन्हें उनके शत्रु (दीन को प्रबल पशु) और व्याधा तथा शिकारी झख मारते हकवा भी कराते पर नहीं पातेमानों उन्हें यह बैरियों से बचने के लिए क्रिला हो गया है। अब नदी, नाले,झरने, सोत, सर, वापी तड़ाग भी जल स्वच्छ कर शोभा युक्त हुए क्योंकि सरिताबों ने समस्त संसार की गर्दगुबार ले जाकर अपार सागर में जा बहाया और लहर, भवर चद्दर, तोड़, छटन, तीक्ष्णधार कम हुई कि पाताल की भी मछलियाँ पन्न पन पर मारती नज़र आने लगी, कि नक्र, मकर, ग्राह, संस, कछुहे, ऊद इत्यादि के भी भोजन में अब कठिनाई न रह गई अतएव वे आनन्दित मन स्वछन्द बिहार करने लगे; कोई मेंढकी की खोज में नदी कूलस्थ नाना प्रकार की घास तथा नर, नरकुल, बेंत, नदनरई, औरवों का इत्यादि की वेतरों में जो शोभा से भरी हैं घुसे खोजते, कोई और कहीं शिकार की तार में छपे बैठे हैं। श्राकाश में उड़ती हुई ठहरी धोबइन, तलीचरैया, कौडेनी, चश्मा इत्यादि (बारि बिहङ्ग) आबी चिड़ियायें मछलियों पर निशाना साध चन्म से बुस पानी में से शिकार ले चली कि छेमकरी उनसे भी छीन कर चाभ गई, अब फिर! वे विचारी अपनी ताक में लगी, पन बुड्डी, तलही, बतक, ताल वतकी, कौमारी इत्यादि तो दरियाई घोड़े के समान पानी पर दौड़ दौड़ आहार कर बिहार करतीं; तट पर भी जांघिल, जलकाक, करांकुल, क्रौञ्च, बक, टिटिहर्ग, चक्रवाक, सारस, मराल, इत्यादि भी