पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 2.pdf/५२६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४९४
प्रेमघन सर्वस्व

हमारे वास्तविक अनुत्साह के कारण भी यही लोग है, जिसे हम न छिपा सके और कही देना पड़ा, चाहे इसका फल कुछ ही क्यों न हो। क्योंकि परस्पर हमारा और उनका सम्बन्ध अटल, और दुर्निवार्य है। वह लाख अपराध करके भी हमारे ऊपर वैसाही अधिकार रखते, कि जैसे पूर्व में। और हमारे अच्छे से अच्छे कार्य को भी वह सहज ही में दोषयुक्त कह कर चुप करा देने में समर्थ हैं। सबी बातों में वे सम्मति देने वाले और निज मनमानी कार्यवाही करा देने वाले। यद्यपि मैं एक प्रकार सर्वथा उनके आधीन हूँ; तौभी कैयों की अपूर्व अनुमतियों के सदाविरुद्ध रहा करता; विशेषतः लिखने पढ़ने वा पुस्तक और पत्र के विषय में तो मेरा मत दो एक व्यक्तियों के अतिरिक्त प्रायः सब से अलग और स्वतन्त्र है; तौभी औरों के अनुरोध से कभी न कभी परतन्त्र होना ही पड़ता है। विषेशतः जो बातें मण्डली में प्रवेश पा गई उनका निबटेरा तो फिर उसी के आधीन रहता है। कादम्बिनी के विषय में मण्डली ने अधिकांश बातों में यद्यपि मुझे खातन्य दे दी है, परन्तु मित्रता का नाता टेढ़ा होने से सबी प्रकार की सब की सम्मति सदा सापेक्ष्य रहती। यद्यपि चार भारतीयों की एक सम्मति किसी एक विषय में स्थिर होनी एक प्रकार कठिन है, तथापि अपने लोगों में कुशल है। यदि एक बिगड़ता तो दूसरे सुधारते, समझाते, बुझाते, और फुसलाकर उसे पथ पर लाते हैं। इस विषय में प्रायः उनमें से बहुतेरे ऐसीही बातें करते कि जिसे सुनकर मैं बिलकुल ही बेदिल और उदास हो एकदम उत्साह शून्य हो जाता, और कदाचित मण्डली के मेम्बरों को छोड़ सबी कोई मेरी बात मान सकता है, पर वे नहीं। अस्तु, मित्रों की यह राम कहानी तो तमाम होनी नहीं है, हाँ समय समय पर अवश्य ही पाठक उस्से परिचित होंगे। सारांश श्रावण के अन्त से लेकर भाद्रपद पर्जन्त नाना प्रकार के वाद विवाद के बाद वह सब आपत्तियां छोड़ छुड़ाकर किसी प्रकार प्यारी आनन्द कादम्बिनी का प्रादुर्भाव निश्चय हुआ। मैंने कहा, कि विगत वर्षों की भाँति उचित समय फिर भी जाता रहा। आशा हुई,—"कैसा समय? कादम्बिनी के लिए सदैव समय है, विशेषत: शरद की कादम्बिनी का स्वागत तो सारा संसार करता है। इसी के स्वाति बिन्दु से अनादि की कौन कहे, मुक्ता, गजमुक्ता, गोरोचन और कपूरादिक से मूल्यवान पदार्थ भी उत्पन्न होते हैं। अतः इसमें यह आपत्ति अब अश्रोतव्य है। इसके और सब विषयों में अनेक आग्रह करने पर भी सबी बातें पूर्वक्त रहने ही की सम्मति स्थिर हुई।