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प्रेमघन सर्वस्व


करें, भगवान के निहोरे किसी व्यक्ति विशेष की अन्तरात्मा को ऐसी अनुचित चोट न पहुँचायें कि जो सभ्यता वा न्यायानुमोदित न हो, अथवा जो शिष्ट और सहृदयों की दृष्टि में घृणास्पद वा निज भाषा के मान में वहा लगाने का हेतु हो।

नागरी प्रचारिणी सभायें भी कुछ न कुछ कार्य करती ही रही, किन्तु बङ्गाल के सुयोग्य अग्रगण्यों द्वारा एकलिपिविस्तार सभा संगठन होना अवश्य ही उसके लिये शुभलक्षण है।

सामान्य।

विगत वर्ष के जाड़ा पाला, ओलों की वर्षा वा अनावृष्टि की क्या कथा कही जाय, कि निरन्तर ऋतुओं में विलक्षण दुष्काल और प्लेग विभूचिकादि रोगों का क्या कहना है इसका तो मानो भारत अड्डा ही हो रहा है और उसके दूर होने की भी आशा केवल ईश्वर के अनुग्रह के अतिरिक्त और क्या हो सकती है।

पत्रिका।

यदि हम आनन्द कादम्बिनी के बीते वर्ष के कृत्यों पर ध्यान देते हैं तो उसमें सम्पादकीय लेखों में सम्मतियों को छोड़ गद्य लेख में केवल दिल्ली दचार में मित्र मण्डली के यार, पद्य में संगीत सुधाञ्जलि से वन्दना विन्दु याही बाराङ्गना रहस्य नाटक। परिहास में पशुप्रपञ्च मात्रप्रकाशित हो सका। किन्तु डाँ. ३ सामयिक कवितायें अर्थाथ काशी काँग्रेस के अवसर पर... शमसम्मिलन' प्रयाग के भारत धर्म महामण्डल और सनातन धर्म महा सभा के महोत्सवों पर 'आनन्द अरुणोदय' तथा भारत में श्रीमान् प्रिन्स आफ़ वेलम् के शुभागमन पर 'यार्थ्याभिनन्दन' का निर्माण, नागरी भाषा और इस देश की प्रार्य प्रजा के सामान्य उपहार स्वरूप प्रशंसित श्रीमान और जन सामान्य को समर्पित होकर समयानुसार कादम्बिनी के संग भी वितरिन हो उसके पाठकों के मनोरञ्जन की हेतु हुई।

अनेक सहदय स्वभाषामर्मज्ञ और सुयोग सज्जनों ने उसे पाकर अपना असीम आनन्द भी प्रकाशित किया है, जो निस्संदेह हमारे परितोष और उत्साहवर्धन का हेतु हुआ है।

सहायक संपादकों के लेखों में, निज अनुज श्रीयदुनाथ प्रसाद अनुवादित 'विन्ध्याटवी में महर्षि जावालि श्रीहरिश्चन्द्र लिखित 'आषाढ का आरंभ'