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आनन्द कादम्बिनी का नवीन सम्वत्सर

और 'फाल्गुन' तथा चिरजीवी श्री नर्मदेश्वर प्रसाद लिखित जान फ़ीसू। परित कलापि कलरव में भारतेन्दु का पुराना पत्र और 'वर्णावली' के अतिरिक्त कई अन्य प्रबंध प्रकाशित हुये हैं, जिनका विशेष व्योरा वार्षिक मुद्रित सूचीपत्र में मिलेगा जिनके लेखक महाशयों के हम अति कृतज्ञ है।

अब हम अपने उन सहयोगियों की कृतज्ञता प्रकाश करके धन्यवाद देते हैं, जिन्होंने हमारी असह्य असावधानी पर भी निज असीम उदारता का परिचय देते निरंतर अपने बहमूल्य पत्रों को प्रेषण करते रहे। एवम् उन अनुनाहक ग्राहकों का कि जो मूल्य भेज अनुग्रहीत किया है। उपसंहार में ईश्वर से यही प्रार्थना है, कि वह अब इन दोषों को दूर कर कादंबिनी को सब भाँति से सुसंपन्न कर इसको निज रासिकों को संतुष्ट करने की शक्ति दे।

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धन्य उस! लीलामय जगदीश्वर का विलक्षण व्यापार, जिस का कहीं से कुछ वारापार नहीं लखाता, न कहीं से किसी प्रकार यह समझ में आता कि कब, कहां से, किस भांति पर क्या कर दिखलायेगा और किसे कहाँ से कहां पहुँचायेगा। क्यों और किस प्रकार उसका कौन सा कार्यारम्भ होगा और क्या करने वालों से कब क्या करा देगा। नास्ति, से अस्ति शून्य से सृष्टि, शान्ति से विविध व्यापार और कठिन कोलाहल बात की बात में उत्पन्न कर परम अशान्ति और विलक्षण विनोद के व्याज अचिन्त्य परिणाम प्रगट कर वह अपने अलौकिक शक्ति का परिचय देता है कि जिसे न केवल मनुष्य, वरञ्च सुर और असुर भी समझ कर मुग्ध होते कि उन्हो ने क्या समझा था और क्या हुश्रा, किस लिये क्या किया था और परिणाम क्या हुआ! इसी से अन्त को यही मानना पड़ता कि वास्तव में उद्योग का फल सर्वथा स्वाधीन नहीं है।

पौराणिक इतिहास के प्रारम्भ पर ध्यान दें, तो सहज ही समझ पड़ेगा कि आदि में अकस्मात् मधु कैटभ का अत्याचार और उनका संहार, देवासुर संग्राम और उन के पीछे के मनुष्य और राक्षसों के परस्पर नित्य के संघर्षण नौर जय पराजय से कैसे कैसे सामान्य काय्य परम कठिन और अति असम्भव सहज में सिद्ध हो, लोगों के अकथ आश्चर्य के कारण हुए हैं। हम आर्यों की यदि उस उन्नत दशा पर ध्यान दीजिये, कि जब सनातन वैदिक धर्म, जनके शासन से संग संसार के पृष्ठ पर एक छत्र अतिद्वीय साम्राज्य वैभव को प्रदर्शित करता था, तब क्या यह भी सम्भव समझ पड़ता रहा होगा कि कर्मा इसकी भी दीनावस्था दृष्टिगोचर होगी, कि जिसका कोई अन्य प्रतिद्वन्दी