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प्रेमघन सर्वस्व

लाषा करते वे राह ताकते; अतएव हे महाराजाधिराज़ ऋतुराज राज महाराज। जो चरण कमल कृपा सौरभाश्रित बसन्त के खिले सुमन सौरभ से वञ्चित मतिमन्द मलिन्द उसका दम भरते थे वे कमल कलिका के कारागार में पड़े मुगन्ध की धुकनी से अम्लाननाकों में दम आ गया है जिनके त्राहि त्राहि का पुकार करते मरते हैं, क्योंकि अपने प्रिय सूर्य के दर्शन बिना कमल के कलित मुकुल केवल सूर्यमुखी के मुकुलों के मुख सूर्य के सुख की अनुहार जान निहार कर का आज लौं तो किसी भाँति अपने प्राणों को रक्खा, परन्तु अब जो वे भी दसो दिशाओं में दृष्टि देकर सूर्य को न देखा अतएव अपनी अभाग्य की सन्ध्या समय जान समय को न पहचान दिशा भ्रम होने के समान चौकन्ने से संकुचित सिर नीचे किये अदब से अपने दुःख का निवेदन कर रहे हैं; अतएव अब आशा हो कि यद्यपि काली उर्दी की जङ्गी सैन्य अर्थात् स्याम बन घटा समूह की असंख्य पलटने जा चुकीं, पर अब ये श्वेत वस्त्रधारी फौज को भी प्राशा हो किश्यावश्यकतानुसार रह जाँय, और भगवान् प्रभाकर की प्रभा को पाने में अटकावन करें, कि जिसमें सूर्य मुखी और कमल, के फूल खिलें, तथा अपनी मूर्खता का फल पाकर दया योग्य हो गये दीन मधुकर भी दुख हीन हों; तथा मयङ्क मरीचिकाओं को दरसा कुमोदिनी कामिनी के मुख मुकुल को खिला।

आश्विन १९३८ वै॰ आ॰ का॰