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प्रेमघन सर्वस्व

गिर तो पड़े, बस आर्तनाद से करुणा क्रन्दन करने लगे, अरे अकिल की टाँग तो टूट गई रे "लंगड़े" तो हो गए। अब तो "नेस्तनाबूद" हुआ जानो अब ग्वैर नहीं! बहुत दिनों को लालसा थी सो "सुरपुर" अब चले। बस हाय हाय मच गई रोने की आवाजें आने लगीं, सुनिये वह! चन्द्रिका का चेंचे स्वर अलग सुनाई दे रहा है।

प्रिय पाठको! हमने जो अपने पत्रिका की प्रथम संख्या में लिख दिया था कि (सच पूंछो तो जब से कवि वचन सुधा से सुधा का स्वाद "सुधा सुर पुर" में जा बसा और हरिश्चन्द्र चन्द्रिका के चन्द्रिका में चमकीला पन और मनोहरता का गुन मोहनपन के परदे से ढंच गया इत्यादि) इन दोनों पंक्तियों ने इन दोनों का काम तमाम कर डाला, और उर्दू की जो उन्हें आधार हो रही है होनहार दुर्दशा सोच ये मारे सोच अभी से बिह्वल हो गए, क्या करे! क्यों न चिन्ता कर, और इस छुपे सुदे मरम के खाल देने पर क्यों न कड़बड़ाय। पर अब टुक्र श्रीमान महाराज शाहजहाँ के खानदान की बच्ची बचाई सब कुछ मुगलानी उर्दू की दुख़तरे नेक अख्तर बीबी चन्द्रिका का जौहर कि जिसका इस वृद्धावस्था में विद्यार्थी शौहर हुआ है देखिए, वाहवा! क्या कहना है, येः चटक मटक! ऐ सुभान अल्लाह, मैं सदके! मैं कुर्वान! माशा अल्लाह! चश्में बद्दूर। बीबी तुम्हारे इस सिन व साल पर इन नए नखरों ने तो वल्लाह बस घेतरह आफत मचा दिया। वाह क्या बोली है कि रोने में भी ठिठोली है, पर तिसपर भी पाप के बड़े भाई हज़रत मौलाना कविवचन सुधा साहब कि जिनका दिमाग उर्दू की बू से फटा चाहता है वो फर्माते हैं कि "हाँ अगर कादम्बिनी हट जाय तो चन्द्रिका दिखाई पड़े" सच है कादम्बिनी से चन्द्रिका सदा दबी रहती हैं। लेकिन यह आपके जनाव ऐडिटर साहब बेतरह फरमाते हैं, हजरत समालोचना हो न की समालोचना क्या है, गोया समालोचना मत है, नवनीत है सार है, जौहर है लुब्बेलुबाब है, खुलासा है, निचोड़ हैं; अपनी करनी से पाक हो जाना है, जवाब देही से बरी हाना है, इधर उधर से सांच साँच कहीं से जवाब के बदले ऋछ कह देना है, नाहक का झगड़ा मोल लेना है, सेतमेत का ठेना है, वल्लाह 'क्या वेगार टालना है, गोया बड़े भारी फ़र्ज़ के बोके का उतारना है; सच है यह श्राप के बेजार होने का इज़हार है, और सूकूत के पालम का सुबूत है, मेरी हिमाकत का बयान आपकी लियाकत की सिदाकत करता है। आपकी बोलियाँ नापी के हक में बन्दूक की गोलियाँ हो रही हैं, भला वह आप ने