पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 2.pdf/५७१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

 

प्रेषित पत्र

संग्रह प्रेरित पत्र पर, लिखित पच अनुवाद।
हम उत्तर दाता नहीं, इनके सह संवाद॥
मान्यवर श्री युत क॰ व॰ सु॰ संपादक समीपेषु।

महाशय,

किञ्चित् वृतान्त आज कल मिरजापुर का लेखन करता हूँ कृपा कर इसको अपने अलौकिक पत्र में स्थान दे मुझे बोधित कीजिए।

जान्हवी कोप

ता॰ २ अगस्त को इस नगर में क्या समस्त जिला में जैसे भी गगा जी ने कृपा की, कभी नहीं की थी, वहाँ के वृद्धों के कहने से यह जान पड़ता है कि यद्यपि सवत् ९१८ में गंगा जी ने भी बलदेव जी का चरण स्पर्श किया था तथा उस पार में मझरा इत्यादि सब गाँव तथा और कई पुर बह कर वहाँ का समस्त भूमि जल मग्न हो गई थी और बहुत कुछ हानि भी मई थी परन्तु अब की बेर तो मानो श्री गड्ड़ा जी ने अपनी महिमा और कोप अपने तटस्थ मनुष्यों को दिखाया हाय! हाय! अब मैं उस आपत्तिका स्मरण करता हूँ तो रोमाच होता आँखों से अश्रु डब डबा आता है। ता॰ दूसरी के तीसरे पहर को जब मैं इस अकथनीय भयोत्पादक बाढ़ के अवलोकनार्थ गया था देख देख कर रोंगटे खडे हो ही कर शरीर कपायमान होती थी जिधर दृष्टि जाती थी यह ज्ञात होता था कि मानो भगवान घट घट अन्तराम अपने प्रजाओं को दुष्कमरत देख असह्य दु.ख को न सहन कर इस मिथ्याभाषण अथवा निन्दा द्रोह, जीवहिंसा अन्याय का फल दिखाया वा उन बिचारी भारतवर्षीय दीन स्त्रियों का दुखमय रुदन सुन कर जिनको उक्त देश निवासी पुरुषों ने कारागार में डाल रक्खा है, आप नाना प्रकार के विहारस्थल, नगर नदी, वाटिका पर्वत नाच रंग देख कर आनन्दित हो और अपन प्यारी सुकुमारियों को चिड़ियों की भाँति पिंजड़े में बंद रक्खै। आप एक रहते दस विवाह करै, उन्हें एक के न रहते भ' एक को तर

३९