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प्रेमघन सर्वस्व

उसी को बहतेरे जीवन पर्यन्त में भी नहीं कर सकेंगे। यदि उसका ध्यान उचित और उत्तम कृत्यों में निमग्न है तो समय सुख से व्यतीत करता है नहीं तो बहुतेरों का जीवन भारभूत सा हुआ रहता है। दिन रात जम्हाते बीतता है इनकी दीर्घ सूत्रता और रात दिन के बर्ताव को देखने से यही जान पड़ेगा कि मानों ये अपने को असर समझे हुए हैं। बहुतेरे खूब खाकर पेट पर हाथ फेरते पान कुचते तकिया का आश्रय ले पलंग पर जा सो जाते हैं और बारह चौदह घन्टा अपना समय नींद में सोते हैं। वैद्यों और डाक्टरों का मत है कि छः घन्टा शारीरिक स्वास्थ्य के निमित्त सोना उपयुक्त है। वदि इतना ही सोने का अभ्यास किया जाय तो कितना समय बच सकता है। अधिक सोने से केवल समय हानि ही नहीं होती, शरीर के जितने अवयव है शिथिल और अयोग्य हो जाते हैं, और १२ घन्टे सोने के बाद उतनी ही व्याकुलता और अशक्तता कार्य करने में होती है। शरीर और मन दोनों को इससे हानि पहुँचती है। फिर खाने के पश्चात् तुरन्त सो जाने से बालस्य हाड़फूटन, अपच, म्लानता, शिरोव्यथा होती है, यद्यपि नींद झटपट आ जाती है।

यदि मनुष्य अपने अमूल्य समय को न खोना चाहे तो उसे क्षूद्र कामों में प्रवृत्त न होना चाहिए। ऐसे कृत्योंका करना अनुचित है, जिसे पीछे समझ मनुष्य लज्जित होता है और पछताता है। मनुष्य को अपने पद और योग्यता के अनुसार काम करना उचित है। यदि राज्य का भार आप पर है और यापन नाचने गाने में कथक, कलावंतों को मात किया, कपड़े सीने में दरजी को हटाया, वा बहुत उत्तम पाक बना लिया तो क्या इससे आप की ख्याति होगी वा श्रापक राज्य का काम सरैगा। गत हज़रत नवाब वाजिद अली शाह को यदि किसी ने फैसर बाग की बारहदरी के भरे महफिल में पेशवाज पहिने नाचते देखा होगा,कभी भीमला बतला सकता था कि ये धुरीण हैं जो इस तरह गाने में काटन से कठिन मोड़े ले रहे हैं, और अपने नाचने बनने बतलाने और भाव सं गुणग्राही रसिक मंडली का चित्र साखांच दिये हैं वा 'इन्दरसभा' में गुल्फाम बने, अपनी माधुरी मूर्ति और सुरीले स्वर से चमचमाती जवाहिर संजड़ा एकता अनूठी सब्जपरी को लुभाये हुए हैं और उसके यह कहने पर कि 'अरे मैं वहाँ तुमसे कहती थी, क्यों न माना हाय तूने मेरा कहा' मूं लटकाये हये है, वा बसन्ती पट पहिने सैकड़ों केसर से रंगी समुखियों के खोजने पर भी नहीं मिलते। भूलभुलैया खेल रहे हैं और लंका की सीढ़ियाँ कामि