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समय

नियों के सहारे उतर चढ़ रहे हैं। क्या ही उत्तम कृत्य ये राजा के हैं जिसपर करोड़ों की रक्षा का भार है! कैसी अवस्था की बरबादी है।

बहतेरे शारीरिक सजावट ही में अपना समय वहुत खोते हैं, घन्टों कपड़ा पहिनने बाल बनाने में लग जाते हैं, पर इससे क्या सिद्धि होगी? ठोढ़ी चिकनी बाल छल्लेदार बनेंगे? शरीर का स्वच्छ रखना स्पृहणीय है, परन्तु, क्या कभी आस्तबल में बंधा, जलेबी और महेला खाता चिकना सुंदर घोड़ा बुद्ध दौड़ में जीता बचेगा, वा सांसारिक सरगड़ की डीलदार भूसे से पेट भरने वाले बैलोंके समान खींच सकेगा? कोई बटेरको पञ्चे में दाब घंटों उसकी टँगड़ी खींचा करते, बुलबुल उँगली पर बिठा अड्डे पर उछाला करते, तीतिर को दीमक के वास्ते धुमाया करते, बाज के संग याखेट में जङ्गलों में बहेलियों से भरमा करते, शतरंज चोपड़ खड़खड़ाया करते, ताश गजीफा फेरते, माल भर टैय्यों की सोरही चिकनी करते हज़ारों का हेर फेर किया करते हैं। यही काम यहाँ के बड़े आदमियों को करना उचित है! क्या ही अंधेर है, एक दो दिन कौन कहे जीवन भर इसी में बीत जाता है।

प्रातःकाल उठ मनुष्य को विचार कर निर्णय कर लेना उचित है कि उसे उस दिन क्या क्या और कितना करना है, तब उसके करने में तुरन्त प्रवृत्त हो जाना उचित है। किसी उत्तम दशा के आने पर या वर्तमान दशाके परिवर्तनपर किसी नूतन और लाभदायक कृत्य को करेंगे विचारना व्यर्थ है। केवल उन क्षणों को जो व्यर्थ वाले जा रहे हैं यदि सम्भाल लो तो सबकुछ हो सकता है और समय का उनित वर्ताव तभी होगा जब नियम वा क्रम से मनुष्य अपने समय को बाँट देगा। जिसने ऐसा अभ्यास नहीं डाला है उसे वह श्रादन्द नहीं मिल सकता है जो उनको मिलता है जिनकी नैमित्तिक क्रियाये चाहे वे कैसीह कठिन क्यों न हों नियमित समय पर की जाती और आवश्यक श्रावकाश जी बहलाने को छोड़ जाती हैं।

संसार में बहुत से ऐसे मनुष्य हैं जो अपने समय का उत्तम विभाग न कर जब जो जो चाहा करते हैं, जिसका फल यह होता है कि जितनी कार्यवाहियाँ उनकी होती अधूरी रह जाती। इससे यदि दृढ़ संकल्प से किसी कार्य पर सन्नद हो मनुष्य उसका यथोचित विभाग कर करना बिचारेगा तबी वह उसे कर सकेगा, अव्यवस्थित चित्त कभी कुछ भी नहीं कर सका है। समय के खोने वालों को समय का यथार्थ रूप नहीं जान पढ़ता, हाँ एक दिन अवश्य इसका आदर उन्हें होगा, और वह तब कि जब