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प्रेमघन सर्वस्व
वृक्ष के शतांश के भी पाने की प्रार्थना उनकी व्यर्थ होगी, तभी अपने अमूल्य जीयन की फेंकी बडियों का मूल्य उन्हें यथार्थ में समझ पड़ेगा। परन्तु निर्दय काले कुटिल करान काल ने संयोग पहुँचने पर कब किसे छुटकारा दिया है।
श्रावण १९५१ वै॰ ना॰ नी॰