पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 2.pdf/७९

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हिन्द, हिन्दू और हिन्दी

इसी के बिना उक्त चारों हकार की दशा हत और हीन हो रही है! हे ईश्वर तू उक्त चारों हकार से इन्हीं बेजोड़ शब्दों की ध्वनि का सम्बन्ध जोड़ दे! और इनके तथा उन चारों इकार के अतिरिक्त अन्य समस्त वस्तु का नाता तुरन्त तोड़ दे! हमारे शक केवल कारों के अर्थ की सूचना ही मात्र में हमारी उद्विग्नता देख, हमारे लेख को निपट अटपटा अनुमान करने लगे होंगे! फिर यदि इस सम्बन्ध में इसी प्रकार की कुछ और बात करें तो और उपद्रवों के अतिरिक्त भय है, कि पाठक वर्ग कदाचित सचमुच हमें पूरा पागल ही न अनुमान कर ले! अतः कुछ सी बात कह कर इस सम्बन्ध को समाप्त कर देना ही समीचीन बोध होता है।

आश्विन १९५१ वै॰ ना॰ नी॰