पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 2.pdf/८३

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हमारे देश की भाषा और अक्षर


हम आर्यों की आसावधानी और कार्य-शिथिलता ने राज-पाट, मानमर्यादा, स्वाधीनता और सब प्रकार के अधिकारों को खोया। खेद का विषय है कि वह अद्यापि हम में ज्यों की त्याों वर्तमान है, वरंच यदि यह भी कहें कि उसकी निरन्तर वृद्धि होती जाती है, तो भी अन्यथा नहीं होगा, क्यों कि यही कारण है कि बची खुची सम्पत्ति भी इस जाति की नष्ट हो रही है, और जो स्वत्व सामान्यतः सब को प्राप्त हैं, यह उससे भी वञ्चित है। उसमें भी अब विचार-दृष्टि से देखिये तो भारतवर्ष के अन्य प्रदेश और प्रान्ती से हमारे इस पश्चिमोत्तर प्रदेश पर अधिकतर परमेश्वर की अकृपा प्रतीत होती है, क्योंकि यही सबसे दीन और सब प्रकार से सभी विषयों में हीन है। वृटिश साम्राज्य में अन्य देशों की अपेक्षा भारत में यद्यपि उदारता न्यून है, परन्तु भारत के भी भिन्न भिन्न भागों से भागे पश्चिमोत्तर प्रदेश में उदारता के स्थान पर संकीर्णता प्रचलित है, क्योंकि यहाँ जो अनुशासक याते भी प्रायः चने चबाये, ऐसे कि जैसे अभागों के लिये आवश्यक है। वे बिना इसके बिचार के कि देश को किसकी आवश्यकता है, वा प्रजा किसके प्राप्ति की स्वत्वाधिकारी है, केवल प्रचलित प्रणाली का निर्वाह करना मात्र अपना इति कर्तव्य मानते हैं। प्रजा यहाँ की प्रायः ऐसी ही है कि जिसे अपना हिताहित का न तो ज्ञान है, और न उसे यथाविधि उद्योग करने की योग्यता है बस कछ ऐसा दशा वर्तमान है कि जिससे उनकी इस अवस्था का परिवर्तन होना भी असम्भव प्रतीत होता और साथ ही उनमें परस्पर द्वेष की ऐसी जड़ जमी है कि जिससे सब प्रकार की उन्नति की आशा निराशा मात्र प्रतीत होती है।

वृटिश राज्य की निर्मल नीति की प्रभा से भारत वर्ष के प्रायः समस्त प्रदेश और प्रान्तों में प्रादेशिक और प्रान्तिक भाषायें प्रचरित हैं; परन्तु आश्चर्य कि अभागे पश्चिमोत्तर प्रदेश में उर्दू (जो अरबी, पारसी, तुरकी आदि कई भाषाओं की पंचमेल खिचड़ी सी है) और अरबी के अक्षर प्रचरित हैं। यह उर्दू भाषा इन्हीं अरबी अक्षरों में लिखी जाने से अब मानो अरबी पारसी की छोटी बहिन हो गई है। कारण इसका यह है कि अरबी

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