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प्रेमघन सर्वस्व

और वह अरबी अक्षरों को निज राज कार्यालयों से निकालना आरम्भ करना चाहती है, जो कदापि न्यून हर्ष का विषय नहीं है। बात वह मघवा का अर्थ विड़ौला कहना चाहती है अपना मसि को खड़ा कर नील रंग रंगने के तुल्य अरवी के स्थान पर अंग्रेजी अक्षरों अर्थात रोमन लिखने की प्रथा प्रचलित करना चाहती है, तो भी वह धन्यवादाई है।

अभी थोड़े ही दिन हुये जब कि हमारे प्रादेशिक राज्यसिंहासन पर श्रीमान् एलेन केडल महाशय विराजमान थे, और उनके राज्य ने जब इस प्रस्ताव को प्रकाशित किया था, तभी हमने उन्हें अनेक धन्यवाद देकर लिखा था कि—"यधपि यह कोई आश्चर्य का विषय नहीं है, क्योंकि किसी राजा का अपने अक्षरों का आदर करना स्वाभाविक है तो भी जब तक उस भाषा का प्रचार इष्ट न हो, तब तक और की अंगरखी और के अंग में पहिनाने के सदृश यह भी एक प्रकार की विडम्बना ही है; अर्थात् देश भाषा के संग देश ही के विशुद्धाक्षर का प्रचार देना न्यायानुमोदित है। और इसी रीति से कार्य की सुगमता और शुद्धता, तथा प्रज्ञा की प्रसन्नता एवम् बिना कठिनता के उसके कार्यनिर्वाह की सरलता सम्भावित हो सकती है। अस्तु यद्यपि यह आधा तीतर और आधा बटेर की कहावत के अनुसार अधूरा न्याय वा सद्नुष्ठान है, तथापि हम अपने वर्तमान प्रादेशिक प्रभु श्रीमान-रलेन केडल महाशय को बिना धन्यवाद दिए नहीं रह सकत +++ इस कारण कि यदि उर्दू भाषा को रख कर भी गवर्ममेएट अरबी के अक्षर अपने राज कार्यालयों से उठा दे तौभी देश का बड़ा उपकार होगा, क्योंकि उसमें एक ही शब्द दस दस बीस बीस प्रकार से पढ़े जा सकते है। इसमें सन्देह नहीं कि अरबी अक्षरों की नाई उर्दू भाषा का प्रचार भी केवल बिडम्बना मात्र है, अतः गवर्नमेन्ट को उर्दू रोमन के स्थान पर हिन्दी रोमन का प्रचार देना चाहिये। क्योंकि बड़े बड़े अरवी पारसी भाषा के शब्द पाने ही से हिन्दी का उर्दूनाम होता है, फिर कठिन कठिन पारसी, अरबी, तुकी, भाषा के शब्दों से क्या लाभ सम्भव है; कि जो न तो प्रजा की बोल बाल में आते, और न राजा के? यद्यपि आशा अवश्य ऐसी है कि उस अक्षर के हटाये जाने से ऐसे ऐसे शब्दों का क्रमशः अभाव होता जायगा, किन्तु उसके स्थान पर अनेक अंग्रेज़ी शब्दों की वृद्धि होगी और इस भांति एक नवीन ऍग्लो उर्दू भाषा बनेगी। अतएव हम चाहते थे कि एंग्लो हिन्दी होती न कि उर्दू। क्योंकि, जिस प्रकार हम देश में यवनों के अधिकार से हिन्दी भाषा में पारसी, अरबी,