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हमारे देश की भाषा और आकर्षक

परन्तु उर्दू जानने वालों की अब तक भी इतनी कम संख्या है कि दो चार गाँवों में ढूढ़ने से ऐसा मनुष्य मिलेगा जी उर्दू की चिट्ठी को पद सकता हो। अधमहे रोमन जानने वाले। उनका तो यह दशा है कि शायद एक तहसील के इलाके भर में भी कठिनता से दो चार मनुष्य ऐसे मिलेंगे जो रोमन अक्षरी को पढ़ सकते हों, वा लिख सकते हो। पश्चिमीवर देशीय गवर्नमण्ट के अधिकारी लोग जब ऐसे अचलित अक्षरों को अदालतों में चलाने का विचार कर रहे हैं, तब इसे पक्षपात के सिवाय और क्या कहा जाय।

विशेष शोक हमको इस बात का है कि आज कल पश्चिमोत्तर देश में एक ऐसे सुविचारक न्यायवान और दूरदर्शी विद्वान् लेफ्टिनेण्ट गवर्नर का शासन समय है, कि जो प्रजा के अहितकारी कार्य को स्वप्न में भी नहीं करते हैं। उनके समय में एक ऐसे प्रधान प्रजा पीड़क कार्य का ही जाना अवश्य ही शोक का स्थान है।

इस बात को सब ही लोग जानते हैं कि श्रीमान् सर ए॰ पी॰ सेकडालन बहादुर मध्यप्रदेश में चीफ कमिश्नरा और बंगाल में लेफिटनेण्ट गवर्नरी का कुछ काल तक कार्य कर चुके हैं, तब क्या वह स्वयम् कह सकते हैं कि उन प्रान्तों की अदालतों में विदेशीय भाषा और विदेशाय अत्तर प्रचलित हैं? याद इस प्रश्न का उत्तर "नहीं" है तब किल न्याय के अनुसार पश्चिमोत्तर देश को अदालतों में विदेशीय और प्रजा के अनिचित अक्षरी के प्रचार का अत्याचार किया जाता है!

"हम अनेक बार कह चुके हैं कि पश्चिमोत्तर देश के निवासियों को चाहिये कि जिस नगर में श्रीमान लेफ्टि़नेण्ट गर्वनर बहादूर जाँय नहीं उनको नागरी के प्रचारार्थ मेमोरियल दिये जाय और उनसे प्रार्थना का जाय कि अदालतों में हिन्दी का प्रचार करें, परन्तु पश्चिमोत्तर देश के हिन्दी हितैषियों ने इसमें आलस्य किया और अब तक भी बालस्थ कर रहे हैं।"

अब हम पूछते हैं कि हमारा सहयोगी जो हम लोगों पर दोषारोए करता है, तो क्या वह अन्यथा है? खेद है कि बंगाल के हिन्दी तथा अन्य भाषानों के पत्र तो यों लिखें और हम लोग कान में तेल डाले सुने! उसकी सम्मति के अनुसार प्रत्येक खंड में प्रादेशिक प्रभु के परिश्रमण में सार्वजनिक निवेदन पत्र देकर हिन्दी के लिये पुकार करनी तो अलग रही, उसके इस