खिलते कि उस रस में समाविस्थ हो मनुष्य क्या पेड़ के पत्ते तक नहीं हिलते। सन्ध्या से जो आ धमके तो तीन बजा डाला, रात बिता डाली और संसार भर का सार निकाल डाला की बात ही न बच रही जिसकी छान बीन बच जाय कारण यह है कि प्रायः सभी एक दूसरे से भिन्न प्रकृति वाले हैं परन्तु फिर भी आश्चर्य है कि प्रायः सभी मित्र हैं। (ऐसे ही किसी २ में किसी विशेष कारण से मतभेद और कइयों से परस्पर कुछ सम्बन्ध नहीं है, किन्तु किसी किसी से परस्पर कुछ एक प्रकार की अश्रद्धा भी है। परन्तु इस "गुप्त" गोष्ठी में तो व्याघ्र और बकरी एक साथ पानी पी लेते हैं। उनमें परस्पर ऐसा हेल मेल भी है कि मित्र को पत्नी छोड़ प्रायः और सब बस्तु एक दूसरा अपना ही समझ लेता है, निदान उसी भाँति (मेरे समाचार[१] पत्र) को भी उनमें से प्रायः सबने अपना ही समझ लिया है और सचमुच कुछ ऐसा ही है। वे बराबर कभी हाथ से लेखनी छीनं २ कर स्वयम् लिखने लगते, कभी पूर्फ उठा कर शोध चलते, तो ऐसी कुछ कारीगरी कर डालते, कि बस उस लेख ही को और का और कर डालते, पूरब का पच्छिम और राल को दिन कर दिखला देते और मैं कुछ भी नहीं कर सकता, उलटा उन के रूष्ट हो जाने के भय से डरता। उन सब के भिन्न अभिप्राय हैं जिनको एक के साथ दूसरे से कोई सम्बन्ध नहीं है और अमन ही अपने मनोरथ को प्रकाशित करना चाहते हैं जिन सब के अर्थ एक २ पृथक पत्र की आवश्यकता है, परन्तु उनमें से जो केवल मैं अग्रसर हुया तं' सब के सब इधर ही झुक पड़े और लगे लेखनी घिसने[२] यद्यपि अभी तक तो उनके लेख समाचार पत्रों में कोई प्रकाशित नहीं हुए परन्तु रुकते भी नहीं।
उन मित्रों की संख्या तो ग्यारह तक है, और मित्रों के मुख्य अन्यमित्रों का तो हम नाम ही न लेगे क्योंकि यही बहुत हैं। हाँ अपने मित्रों के प्रसंग में कदाचित् जो कुछ चर्चा उनकी भी भी जायगी तो अवश्य आप सुन सकते हैं, परन्तु उन ग्यारह में से सात मुख्य हैं जिनमें जो जितने आवश्यक हैं उनका हम उतना ही वर्णन संक्षेप में करेगे जिनमें कई एक महाशय तो ऐसे हैं जो इसी नगरी में रहते हैं, कई आस पास के गावों में और कई विदेशी हैं परन्तु परस्पर सत्य प्रेम के कारण बहुत ही शीघ्र सम्मिलत हो जाया करते और पा व्यावहार तो उनसे इतना होता है कि डाक की प्रत्येक 'डिलेवरी' में एक न
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