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प्रेमचंद की सर्वश्रेष्ठ कहानियाँ


पर अचम्भा हो रहा था। मोह को इससे सुन्दर, इससे सजीव, इससे भावमय कल्पना नहीं की जा सकती।

दोपहर हो गयी थी। किसान लोग खेतों से चले आ रहे थे। उन्हें विनोद का अच्छा अवसर मिला। महादेव को चिढ़ाने में सभी को मजा आता था। किसी ने कंकड़ फेंके, किसी ने तालियाँ बजायीं; तोता फिर उड़ा और वहाँ से दूर आम के बाग में एक पेड़ की फुनगी पर जा बैठा। महादेव फिर खाली पिजरा लिये, मेंढक की भाँति उचकता चला। बाग में पहुँचा, तो पैर के तलुओं से भाग निकल रही थी, सिर चक्कर खा रहा था। जब जरा सावधान हुआ, तो फिर पिंजरा उठाकर कहने लगा- "सत्त गुरुदत्त शिवदत्त दाता।' तोता फुनगी से उतरकर नीचे की एक डाल पर आ बैठा; किन्तु महादेव की ओर सशक नेत्रों से ताक रहा था। महादेव ने समझा, डर रहा है। वह पिंजड़े को छोड़कर आप एक दूसरे पेड़ की आड़ में छिप गया। तोते ने चारो ओर गौर से देखा। निश्शंक हो गया, उतरा, और आकर पिंजरे के ऊपर बैठ गया। महादेव का हृदय उलझने लगा। 'सत्त गुरुदत्त शिवदत्त दाता' का मन्त्र जपता हुआ, धीरे-धीरे, तोते के समीप आया, और लपका कि तोते को पकड़ ले; किन्तु तोता हाथ न आया, फिर पेड़ पर जा बैठा।

शाम तक यही हाल रहा। तोता कभी इस डाल पर जाता, कभी उस डाल पर। कभी पिंजड़े पर आ बैठता, कभी पिंजड़े के द्वार पर बैठ अपने दान-पानी की प्यालियों को देखता, और फिर उड़ जाता। बुड्ढा अगर मूर्तिमान मोह था, तो तोता मूर्तिमती माया। यहाँ तक कि शाम हो गयी। माया और मोह का यह सग्राम अंधकार में विलीन हो गया।

( ३ )

रात हो गयी। चारों ओर निविड़ अंधकार छा गया। तोता न जाने पत्तों में कहाँ छिपा बैठा था। महादेव जानता था कि रात को तोता कहीं