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पृष्ठ:प्रेमचंद की सर्वश्रेष्ठ कहानियां.djvu/१५३

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मैने कहा-यह तो मैं जानता हूँ, कि तुम्हारी नीयत कभी विचलित नहीं हो सकती; लेकिन लिखा-पढ़ी कर लेने में क्या हरज है?

‘फिजूल है‌।’

'फजून ही सही।

'तो पक्के कागज पर लिखना पड़ेगा। दस लाख की कोर्ट-फीस ही साढ़े सात हजार हो जायेगी। किस भ्रम में हैं आप!'

मैने सोचा, बला से, सादी लिखा-पढ़ी के बल पर कोई कानूनी कार्रवाई न कर सकूँगा। पर इन्हें लज्जित करने का, इन्हें जलील करने का, इन्हें सबके सामने बेईमान सिद्ध करने का अवसर तो मेरे हाथ आयेगा, और दुनिया में बदनामी का भय न हो, तो आदमी न जाने क्या करे। अपमान का भय कानून के भय से किसी तरह कम क्रियाशील नहीं होता। बोला-मुझे सादे कागज पर ही विश्वास आ जायगा।

'विक्रम ने लापरवाही से कहा-जिस कागज का कोई कानूनी महत्व नहीं, उसे लिखकर क्यों समय नष्ट करें?

मुझे निश्चय हो गया, विक्रम की नीयत में अभी से फितूर आ गया। नहीं तो सादा कागज लिखने में क्या बाधा हो सकती है। बिगड़कर कहा-तुम्हारी नीयत अभी से खराब हो गयी।

उसने निर्लज्जता से कहा-तो क्या तुम यह साबित करना चाहते हो, कि ऐसी दशा में तुम्हारी नीयत न बदलती?

'मेरी नियत इतनी कमजोर नहीं है।

'रहने भी दो। बड़े नियतवाले! अच्छे-अच्छों को देखा है!

'तुम्हें इसी वक्त लेख-बद्ध होना पड़ेगा। मुझे तुम्हारे ऊपर विश्वास नहीं रहा।’

"अगर तुम्है मेरे ऊपर विश्वास नहीं है, तो मैं भी नहीं लिखता।'

‘तो क्या तुम समझते हो, तुम मेरे रुपये हजम कर जाओगे।’