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लाग-डाँट


ईश्वर का प्रतिनिधि है, उसकी आज्ञा के विरुद्ध चलना महान् पातक है। राजविमुख प्राणी नरक का भागी होता है।

एक शंका-राजा को भी तो अपने धर्म का पालन करना चाहिए।

दूसरी शंका-हमारे राजा तो नाम के हैं असली राजा तो विलायत के बनिये-महाजन हैं।

तीसरी शंका-बनिये धन कमाना जानते हैं, राज करना क्या जाने?

भगतजी-लोग तुम्हें शिक्षा देते हैं कि अदालतों में मत जाओ, पंचायतों में मुकदमे ले जाओ, ऐसे सच कहाँ हैं, जो सच्चा न्याय करें, दूध-का-दूध पानी-का-पानी कर दें। यहाँ मॅुह-देखी बातें होंगी। जिनका दबाव है उनकी जीत होगी। जिनका कुछ दबाव नहीं है वे बेचारे मारे जायेंगे। अदालतों में सब कार्रवाई कानून से होती है, वहाँ छोटे-बड़े सब बराबर हैं, शेर-बकरी सब एक घाट पानी पीते हैं। इन अदालतों को त्यागना अपने पैरो में कुल्हाड़ी मारना है।

एक शंका-अदालतों में जायें तो रुपये की थैली कहाँ से लावें?

दूसरी शंका-अदालतों का न्याय कहने ही को है, जिसके पास बने हुए गवाह और दॉव-पैच खेले हुए वकील होते हैं उसी की जीत होती है, झूठे-सच्चे की परख कौन करता है, हाँ, हैरानी अलबत्ता होती है।

भगत-कहा जाता है कि विदेशी चीजों का व्यवहार मत करो। यह गरीबों के साथ घोर अन्याय है। हमें बाजार में जो चीज सस्ती और अच्छी मिले, वह लेनी चाहिए। चाहे स्वदेशी हो या विदेशी। हमारा पैसा सेंत में नहीं आता कि उसे रद्दी-भद्दी स्वदेशी चीजों पर फेंकें।

एक शंका-पैसा अपने देश में तो रहता है, दूसरों के हाथ में तो नहीं जाता?

दूसरी शंका-अपने घर में अच्छा खाना न मिले तो क्या विजातियों के घर अच्छा भोजन करने लगेंगे?