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गबन : 127
 


बैठे-बैठे मौज उड़ाएं और चरस पीएं।

रमा जानता था, देवीदीन चरस पीता है, पर बुढ़िया को शांत करने के लिए बोला-क्या चरस पीते हैं? मैंने तो नहीं देखा।

बुढिया ने पीठ की साड़ी हटाकर उसे पंखी की डंडी से खुजाते हुए कहा-इनसे कौन नसा छूटा है, चरस यह पीएं, गांजा यह पीएं, सराब इन्हें चाहिए, भांग इन्हें चाहिए, हां अभी तक अफीम नहीं खाई. या राम जाने खाते हों, मैं कौन हरदम देखती रहती हूं। मैं तो सोचती हूँ कौन जाने आगे क्या हो, हाथ में चार पैसे होंगे, तो पराए भी अपने हो जाएंगे, पर इस भले आदमी को रत्ती-भर चिंता नहीं सताती। कभी तीरथ है, कभी कुछ, कभी कुछ, मेरा तो (नाक पर उंगली रखकर) नाक में दम आ गया। भगवान् उठा ले जाते तो यह कुसंग तो छूट जाती। तब याद करेंगे लाला । तब जग्गो कहां मिलेगी, जो कमी-कमाकर गुलछरें उड़ाने को दिया करेगी। तब रकत के आंसू न रोएं, तो कह देना कोई कहता था। (मजूर से) कै पैसे हुए तेरे?

मजूर ने बीड़ी जलाते हुए कहा-बोझा देख लो दाई, गरदन टूट गई।

जग्गो ने निर्दय भाव से कहा-हां-हां, गरदन टूट गई । बड़ी सुकुमार है न? यह ले, कल फिर चले आना।

मजूर ने न राह तो बहुत कम है। मेरा पेट न भरेगा।

जग्गों ने दो पैसे और थोड़े से आलू देकर उसे विदा किया और दुकान सजाने लगी। सहसा उसे हिसाब को याद आ गई। रमा से बोली-भैया, जरा आज का ख़रचा तो टांके दो। बाजार में जैसे आग लग गई है।

बुढ़िया छबड़ियों में चीजें लगा-लगाकर रखती जाती थी और हिसाब भी लिख्याती जाती थी। आलू, टमाटर, कद्दू, केले, पालक, सेम, संतरे, गोभी, सब चीजों का तौल और दर उसे याद था। रमा से दोबारा पढ़वाकर उसने सुना तब उसे संतोष हुआ। इन सब कामों से छुट्टी पाकर उसने अपनी चिलम भरी और मोदे पर बैठकर पीने लगी, लेकिन उसके अंदाज से मालूम होता था कि वह तंबाकू का रस लेने के लिए नहीं, दिल को जलाने के लिए पी रही है। एक क्षण के बाद बोली-दुसरी औरत होती तो घड़ी भर इसके साथ निबाह न होता, घड़ीं भर। पहर रात से चक्की में जुत जाती हूं और दस बजे रात तक दुकान पर बैठी सती होती रहती हूं। खाते-पीते बारह बजते हैं तब जाकर चार पैसे दिखाई देते हैं, और जो कुछ कमाती हूं, यह से में बरबाद कर देता है। सात कोठरी में छिपा के रक्खू, पर इसकी निगाह पहुंच जाती है। निकाल लेती है। कभी एकाध चीज-बस्त बनवा लेती हूं तो वह आंखों में गड़ने लगती है। तानों से छेदने लगता है। भाग में लड़कों का सुख भोगना नहीं बदा था, तो क्या करूं! छाती फाड़ के मर जाऊँ? मांगे से मौत भी तो नहीं मिलती। सुख भोगना लिखा होता, तो जवान बेटे चल देते, और इस पियक्कड़ के हाथों मेरी यह सांसत होती । इसी ने सुदेसी के झगड़े में पड़कर मेरे लालों की जान ली। आओ, इस कोठरी में भैया, तुम्हें मुग्दर की जोड़ी दिखाऊं। दोनों इस जोड़ी से पांच-पांच सौ हाथ फेरते थे।

अंधेरी कोठरी में जाकर रमा ने मुग्दर की जोड़ी देखी। उस पर वार्निश थो, साफ-सुथरी मानो अभी किसी ने फेरकर रख दिया हो।

बुढ़िया ने सगर्व नेत्रों से देखकर कहा-लोग कहते थे कि यह जोड़ी महाब्राह्मन को दे दे, तुझे देख-देख कलक होगा। मैंने कहा-यह जोड़ी मेरे लालों की जुगल जोड़ी है।