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150 : प्रेमचंद रचनावली-5
 


इस रेल-पेल में सिर झुकाकर चलना मौत को नेवता देना है। पार्क में कोई इस तरह चहलकदमी करे, तो कर सकता है। यहां तो सामने देखना चाहिए। लेकिन बगल वाला आदमी अभी तक मेरी ही तरफ ताक रहा है। है शायद कोई खुफिया ही। उसका साथ छोड़ने के लिए वह एक तंबोली की दुकान पर पान खाने लगा। वह आदमी आगे निकल गया। रमा ने आराम की लंबी सांस ली।

अब उसने सिर उठा लिया और दिल मजबूत करके चलने लगा। इस वक्त ट्राम का भी कहीं पता न था, नहीं उसी पर बैठ लेता। थोड़ी ही दूर चला होगा कि तीन कांस्टेबल आते दिखाई दिए। रमा ने सड़क छोड़ दी और पटरी पर चलने लगा। ख्वामख्वाह सांप के बिल में उंगली डालना कौन-सी बहादुरी है। दुर्भाग्य की बात, तीनों कांस्टेबलों ने भी सड़क छोड़कर वहीं पटरी ले ली। मोटरों के आने-जाने से बार-बार इधर-उधर दौड़ना पड़ता था। रमा का कलेजा धक्-धक् करने लगा। दूसरी पटरी पर जाना तो संदेह को ओर भी बढ़ा देगा। कोई ऐसी गली भी नहीं जिसमें घुस जाऊं। अब तो सब बहुत समीप आ गए। क्या बात है, सब मेरी ही तरफ देख रहे हैं। मैंने बड़ी हिमाकत की कि यह पग्गड़ बांध लिया और बंधी भी कितनी बेतुकी। एक टीले-सा ऊपर उठ गया है। यह पगड़ी आज मुझे पकड़ावेगी। बांधी थी कि इससे सूरत बदल जाएगी। यह उल्टे और तमाशा बन गई। हां, तीनों मेरी ही ओर ताक रहे हैं। आपस में कुछ बातें भी कर रहे हैं। रमा को ऐसा जान पड़ा, पैरों में शक्ति नहीं है। शायद सब मन में मेरा हुलिया मिला रहे हैं। अब नहीं बच सकता। घर वालों को मेरे पकड़े जाने की खबर मिलेगी, तो कितने लज्जित होंगे। जालपा तो रो-रोकर प्राण ही दे देगी। पांच साल से कम सजा न होगी। आज इस जीवन का अंंत हो रहा है।

इस कल्पना ने उसके ऊपर कुछ ऐसा आतंक जमाया कि उसके औसान जाते रहे। जब सिपाहियों का दल समीप आ गया, तो उसका चेहरा भय से कुछ ऐसा विकृत हो गया, उसकी आंखें कुछ ऐसी सशंक हो गईं और अपने को उनकी आंखों से बचाने के लिए वह कुछ इस तरह दूसरे आदमियों की आड़ खोजने लगा कि मामूली आदमी को भी उस पर संदेह होना स्वाभाविक था, फिर पुलिस वालों की मंजी हुई आंखें क्यों चूकतीं! एक ने अपने साथी से कहा-यो मनई चोर न होय, तो तुमरी टांगन ते निकर जाई। कस चोरन की नाईं ताकत है। दूसरा बोला-कुछ संदेह तो हमऊ का हुय रहा है। फुरै कह्यो पांडे, असली चोर है।

तीसरा आदमी मुसलमान था, उसने रमानाथ को ललकारा-ओ जी ओ पगड़ी, जरा इधर आना, तुम्हारा क्या नाम है?

रमानाथ ने सीनाजोरी के भाव से कहा-हमारा नाम पूछकर क्या करोगे? मैं क्या चोर हूं?

'चोर नहीं, तुम साह हो, नाम क्यों नहीं बताते?'

रमा ने एक क्षण आगा-पीछा में पड़कर कहा-हीरालाल।

'घर कहां है?'

'घर।'

'हां, घर ही पूछते हैं।'

'शाहजहांपुर।'