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गबन : 151
 


‘कौन मुहल्ला?'

रमा शाहजहांपुर न गया था, न कोई कल्पित नाम ही उसे याद आया कि बता दे। दुस्साहस के साथ बोला-तुम तो मेरा हुलिया लिख रहे हो।

कांस्टेबल ने भभकी दो-तुम्हारा हुलिया पहले से ही लिखा हुआ है ! नाम झूठ बताया,सकूनत झूठ बताई, मुहल्ला पूछी तो बगलें झांकने लगे। महीनों से तुम्हारी तलाश हो रही है,आज जाकर मिले हो। चलो थाने पर।

यह कहते हुए उसने रमानाथ का हाथ पकड़ लिया। रमा ने हाथ छुड़ाने की चेष्टा करके कहा-वारंट लाओ तब हम चलेंगे। क्या मुझे कोई देहाती समझ लिया है?

कांस्टेबल ने एक सिपाही से कहा-पकड़ लो जो इनका हाथ, वहीं थाने पर वारंट दिखाया जाएगा।

शहरों में ऐसी घटनाएं मदारियों के तमाशों से भी ज्यादा मनोरंजक होती हैं। सैकड़ों आदमी जमा हो गए। देवीदीन इसी समय अफीम लेकर लौटा आ रहा,यह जमाव देखकर वह भी आ गया। देखा कि तीन कांस्टेबल रमानाथ को घसीटे लिए जा रहे हैं। आगे बढ़कर बोला-हैं-हैं, जमादार | यह क्या करते हो? यह पडतजी तो हमारे मिहमान हैं, कहीं पकड़े लिए जाते हो?

तीनों कांस्टेबल देवीदीन से परिचित थे। रुक गए। एक ने कहा-तुम्हारे मिहमान हैं यह,कब से?

देवीदीन ने मन में हिसाब लगाकर कहा--चार महीने से कुछ बेशी हुए होंगे। मुझे प्रयाग में मिल गए थे। रहने वाले भी वहीं के हैं। मेरे साथ ही तो आए थे।

मुसलमान सिपाही ने मन में प्रसन्न होकर कहा-इनका नाम क्या है?

देवीदीन ने सिटपिटाकर कहा–नाम इन्होंने बताया न होगा?

सिपाहियों का संदेह दृढ़ हो गया। पांडे ने आखें निकालकर कहा- जोन परत है तुमहू मिले हौ, नांव काहे नाहीं बतावत हो इनका? देवीदीन ने आधारहीन साहस के भाव से कहा-मुझसे रोब ने जाना पांडे, समझे। यहां धमकियों में नहीं आने के।

मुसलमान सिपाही ने मानो मध्यस्थ बनकर कहा–बूढे बाबा, तुम तो ख्वामख्वाह बिगड़ रहे हो। इनका नाम क्यों नहीं बतला देते?

देवीदीन ने कातर नेत्रों से रमा की ओर देखकर कहा-हम लोग तो रमानाथ कहते हैं। असली नाम यही है या कुछ और, यह हम नहीं जानते।

पांडे ने आंखें निकालकर हथेली को सामने करके कहा-बोलो पंडितजी,क्या नाम है तुम्हारा? रमानाथ या हीरालाल? या दोनों-एक घर का एक ससुराल का।

तीसरे सिपाही ने दर्शकों को संबोधित करके कहा-नांव है रमानाथ,बतावत है। हीरालाल। सबूत हुय गवा। दर्शकों में कानाफूसी होने लगी। शुबहे की बात तो है।

‘साफ है, नाम और पता दोनों गलत बता दिया।'

एक मारवाड़ी सज्जन बोले-उचक्को सो है।