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152 : प्रेमचंद रचनावली-5
 


एक मौलवी साहब ने कहा-कोई इश्तिहारी मुलजिम है।

जनता को अपने साथ देखकर सिपाहियों को और भी जोर हो गया। रमा को भी अब उनके साथ चुपचाप चले जाने ही में अपनी कुशल दिखाई दी। इस तरह सिर झुका लिया, मानो उसे इसकी बिल्कुल परवा नहीं है कि उस पर लाठी पड़ती है या तलवार। इतना अपमानित वह कभी न हुआ था। जेल की कठोरतम यातना भी इतनी ग्लानि न उत्पन्न करती।

थोड़ी देर में पुलिस स्टेशन दिखाई दिया। दर्शकों की भीड़ बहुत कम हो गई थी। रमा ने एक बार उनकी ओर लज्जित आशा के भाव से ताका। देवीदीन का पता न था। रमा के मुंह से एक लंबी सांस निकल गई। इस विपत्ति में क्या यह सहारा भी हाथ से निकल गया?

चौंतीस

पुलिस स्टेशन के दफ्तर में इस समय बड़ी मेज के सामने चार आदमी बैठे हुए थे। एक दारोगा थे, गोरे से, शौकीन, जिनकी बड़ी-बड़ी आंखों में कोमलता की झलक थी। उनकी बगल में नायब दारोगा थे। यह सिक्ख थे, बहुत हंसमुख, सजीवता के पुतले, गेहुआ रंग, सुडौल,सुगठित शरीर। सिर पर केश था, हाथों में कड़े; पर सिगार से परहेज न करते थे। मेज की दूसरी तरफ इंस्पेक्टर और डिप्टी सुपरिंटेंडेंट बैठे हुए थे। इंस्पेक्टर अधेड़, सांवला, लंबा आदमी था,कौड़ी की-सी आंखें, फूले हुए गाल और ठिगना कद। डिप्टी सुपरिटेंडेंट लंबा छरहरा जवान था,बहुत ही विचारशील और अल्पभाषी। इसकी लंबी नाक और ऊंचा मस्तक उसकी कुलीनता के साक्षी थे।

डिप्टी ने सिगार की एक कश लेकर कहा-बाहरी गवाहों से काम नहीं चल सकेगा। इनमें से किसी को एप्रूवर बनना होगा। और कोई अल्टरनेटिव नहीं है।

इंस्पेक्टर ने दारोगा की ओर देखकर कहा-हम लोगों ने कोई बात उठा तो नहीं रक्खी,हलफ से कहता हूं। सभी तरह के लालच देकर हार गए। सबों ने ऐसी गुट कर रखी है कि कोई टूटता ही नहीं। हमने बाहर के गवाहों को भी आजमाया, पर सब कानों पर हाथ रखते हैं।

डिप्टी-उस मारवाड़ी को फिर आजमाना होगा। उसके बाप को बुलाकर खूब धमकाइए। शायद इसका कुछ दबाव पड़े।

इंस्पेक्टर हलफ से कहता हूं, आज सुबह से हम लोग यही कर रहे हैं। बेचारी बाप लड़के के पैरों पर गिरा, पर लड़का किसी तरह राजी नहीं होता।

कुछ देर तक चारों आदमी विचारों में मग्न बैठे रहे। अंत में डिप्टी ने निराशा के भाव से कहा-मुकदमा नहीं चल सकता। मुफ्त की बदनामी हुई।

इंस्पेक्टर-एक हफ्ते की मुहलत और लीजिए, शायद कोई टूट जाय।

यह निश्चय करके दोनों आदमी यहां से रवाना हुए। छोटे दारोगा भी उसके साथ ही चले गए। दारोगाजी ने हुक्का मंगवाया कि सहसा एक मुसलमान सिपाही ने आकर कहा–दारोगाजी,लाइए कुछ इनाम दिलवाइए। एक मुलजिम को शुबहे पर गिरफ्तार किया है। इलाहाबाद का