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गबन : 155
 


रमानाथ—अगर लाए भी तो उससे इतना बड़ा तावान नहीं दिलाना चाहता। आप मुझे शौक से हिरासत में ले लें।

दारोगा—मुझे पांच सौ के बदले साढे छ: सौ मिल रहे हैं, क्यों छोडूं। तुम्हारी गिरफ्तारी का इनाम मेरे किसी दूसरे भाई को मिल जाय, तो क्या बुराई है।

रमानाथ—जब मुझे चक्की पीसनी है, तो जितनी जल्द पीस लूं उतना ही अच्छा। मैंने समझा था, मैं पुलिस की नजरों से बचकर रह सकता हूं। अब मालूम हुआ कि यह बेकली और आठों पहर पकड़ लिए जाने का खौफ जेल से कम जानलेवा नहीं।

दारोगाजी को एकाएक जैसे कोई भूली हुई बात याद आ गई। मेज के दराज से एक मिसल निकाली, उसके पन्ने इधर-उधर उल्टे, तब नम्रता से बोले--अगर मैं कोई ऐसी तरकीब बतलाऊं कि देवीदीन के रुपये भी बच जाएं और तुम्हारे ऊपर भी हर्फ न आए तो कैसा?

रमा ने अविश्वास के भाव से कहा—ऐसी कोई तरकीब है, मुझे तो आशा नहीं।

दारोगा—अभी साईं के सौ खेल हैं। इसका इंतजाम मैं कर सकता हूं। आपको महज एक मुकदमे में शहादत देनी पड़ेगी?

रमानाथ—झूठी शहादत होगी।

दारोगा—नहीं; बिल्कुल सच्ची। बस समझ लो कि आदमी बन जाओगे। म्युनिसिपैलिटी के पंजे से तो छूट जाओगे, शायद सरकार परवरिश भी करे। यों अगर चालान हो गया तो पांच साल से कम की सजा न होगी। मान लो इस वक्त देवी तुम्हें बचा भी ले, तो बकरे की मां कब तक खैर मनाएगी। जिंदगी खराब हो जायगी। तुम अपना, नफा-नुकसान खुद समझ लो। मैं जबरदस्ती नहीं करता।

दारोगाजी ने डकैती का वृतांत कह सुनाया। रमा ऐसे कई मुकदमे समाचार-पत्रों में पढ़ चुका था। संशय के भाव से बोला--तो मुझे मुखबिर बनना पड़ेगा और यह कहना पड़ेगा कि मैं भी इन डकैतियों में शरीक था। यह तो झूठी शहादत हुई।

दारोगा—मुआमला बिल्कुल सच्चा है। आप बेगुनाहों को न फंसाएंगे। वही लोग जेल जाएंगे जिन्हें जाना चाहिए। फिर झूठ कहां रहा? डाकुओं के डर से यहां के लोग शहादत देने पर राजी नहीं होते। बस और कोई बात नहीं। यह मैं मानता हूं कि आपको कुछ झूठ बोलना पड़ेगा, लेकिन आपकी जिंदगी बनी जा रही है, इसके लिहाज से तो इतना झूठ कोई चीज नहीं। खूब सोच लीजिए। शाम तक जवाब दीजिएगा।

रमा के मन में बात बैठ गई। अगर एक बार झूठ बोलकर वह अपने पिछले कर्मों का प्रायश्चित् कर सके और भविष्य भी सुधार ले, तो पूछना ही क्या। जेल से तो बच जायगा। इसमें बहुत आगा-पीछा की जरूरत ही न थी। हां, इसका निश्चय हो जाना चाहिए कि उस पर फिर म्युनिसिपैलिटी अभियोग न चलाएगी और उसे कोई जगह अच्छी मिल जायगी। वह जानता था, पुलिस की गरज है और वह मेरी कोई वाजिब शर्त अस्वीकार न करेगी। इस तरह बोला, मानो उसकी आत्मा धर्म और अधर्म के संकट में पड़ी हुई है--मुझे यही डर है कि कहीं मेरी गवाही से बेगुनाह लोग न फंस जाएं।

दारोगा—इसका मैं आपको इत्मीनान दिलाता हूं।