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गबन : 157
 


जवाब-नहीं। वह घर से भागा है, पर गबन नहीं किया। क्या वह आपके यहां है?

दारोगा जी हां, हमने उसे गिरफ्तार किया है। वह खुद कहता है कि मैंने रुपये गबन किए। बात क्या है?

जवाब-पुलिस तो लाल बुझक्कड़ है। जरा दिमाग लड़ाइए।

दारोगा-यहां तो अक्ल काम नहीं करती।

जवाब-यहीं क्या, कहीं भी काम नहीं करती। सुनिए, रमानाथ ने मीजान लगाने में गलती की, डरकर भागा। बाद को मालूम हुआ कि तहबील में कोई कमी न थी। आई समझ में बात?

डिप्टी–अब क्या करना होगा खां, साहब। चिड़िया हाथ से निकल गया !

दारोगा-निकल कैसे जाएगी हुजूर। रमानाथ से यह बात कही ही क्यों जाए? बस उसे किसी ऐसे आदमी से मिलने न दिया जाय जो बाहर की खबरें पहुंचा सके। घरवालों को उसका पता अब लग जावेगा ही, कोई न कोई जरूर उसकी तलाश में आवेगा। किसी को न आने दें। तहरीर में कोई बात न लाई जाए। जबानी इत्मीनान दिला दिया जाय। कह दिया जाय,कमिश्नर साहब को मुआफीनामा के लिए रिपोर्ट की गई है। इंस्पेक्टर साहब से भी राय ले ली जाय।

इधर तो यह लोग सुपरिंटेंडेंट से परामर्श कर रहे थे, उधर एक घंटे में देवीदीन लौटकर थाने आया तो कांस्टेबल ने कहा-दारोगाजी तो साहब के पास गए।

देवीदीन ने घबड़ाकर कहा-तो बाबूजी को हिरासत में डाल दिया?

कांस्टेबल-नहीं, उन्हें भी साथ ले गये।

देवीदीन ने सिर पीटकर कहा-पुलिस वालों की बात का कोई भरोसा नहीं। कह गया कि एक घंटे में रुपये लेकर आता हूं, मगर इतना भी संबरे न हुआ। सरकार से पांच ही सौ तो मिलेंगे। मैं छ: सौ देने को तैयार हूं। हां, सरकार में कारगुजारी हो जायगी और क्या। वहीं से उन्हें परागराज़ भेज देंगे। मुझसे भेंट भी न होगी। बुढिया रो-रोकर मर जायग। यह कहता हुआ देवीदीन वहीं जमीन पर बैठ गया।

कांस्टेबल ने पूछा-तो यहां कब तक बैठे रहोगे?

देवीदीन ने मानो कोड़े की कार से आहत होकर कहा-अब तो दारोगाजी से दो-दो बातें करके ही जाऊंगा। चाहे जेहल ही जाना पड़े, पर फटकारूगा जरूर, बुरी तरह फटकारूंगा। आखिर उनके भी तो बाल-बच्चे होंगे । क्या भगवान् से जरा भी नहीं डरते ! तुमने बाबूजी को जाती बार देखा था? बहुत रंजीदा थे?

कांस्टेबल-रंजीदा तो नहीं थे, खासी तरह हंस रहे थे। दोनों जने मोटर में बैठकर गए हैं।

देवीदीन ने अविश्वास के भाव से कहा-हंस क्या रहे होंगे बेचारे। मुंह से चाहे हंस लें,दिल तो रोता ही होगा।

देवीदीन को यहां बैठे एक घंटा भी न हुआ था कि सहसा जग्गो आ खड़ी हुई। देवीदीन को द्वार पर बैठे देखकर बोली-तुम यहां क्या करने लगे? भैया कहां हैं?

देवीदीन ने मर्माहत होकर कहा-भैया को ले गए सुपरीडेंट के पास। न जाने भेंट होती है।