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गबन : 165
 

जालपा ने सिर हिला दिया।

'रास्ते में रोना मत।'

जालपा हंस पड़ी। गाड़ी चल दी।

छत्तीस

देवीदीन ने चाय की दुकान उसी दिन से बंद कर दी थी और दिन-भर उस अदालत की खाक छानता फिरता था जिसमें डकैती का मुकदमा पेश था और रमानाथ की शहादत हो रही थी। तीन दिन रमा की शहादात बराबर होती रही और तीनों दिन देवीदीन ने ने कुछ खाया और न सोया। आज भी उसने घर आते ही आते कुरती उतार दिया और एक पखया लेकर झलने लगा। फागुन लग गया था और कुछ-कुछ गर्मी शुरू हो गई थी,पर इतनी गर्मी न थी कि पसीना बहे या पंखे की जरूरत हो। अफसर लोग तो जाड़ों के कपड़े पहने हुए थे,लेकिन देवीदीन पसीने में तर था। उसका चेहरा,जिस पर निष्कपट बुढ़ापा हंसता रहता था, खिसियाया हुआ था,मानो बेगार से लौटा हो।

जग्गो ने लोटे में पानी लाकर रख दिया और बोली-चिलम रख दूं? देवीदीन को आज तीन दिन से यह खातिर हो रही थी। इसके पहले बुढ़िया कभी चिलम रखने को न पृछती थी।

देवीदीन इसका मतलब समझता था। बुढ़िया को सदय त्रों से देखकर बोला-नहीं, रहने दो, चिलम न पिऊगा।

'तो मुंह-हाथ तो धो लो। गर्द पड़ी हुई है।

‘धो लूंगा,जल्दी क्या है।'

बुढिया आज का हाल जानने को उत्सुक थी, पर डर रही थी कह देवीदीन झुंझला न पड़े। वह उसकी थकान मिटा देना चाहती थी, जिससे देवीदीन प्रसन्न होकर आप-ही-आप सारा वृत्तांत कह चले 'तो कुछ जलपान तो कर लो। दोपहर को भी तो कुछ नहीं खाया था, मिठाई लाऊँ? लाओ, पंखी मुझे दे दो।'

देवीदीन ने पँखिया दे दी। बुढिया झलने लगी। दो-तीन मिनट तक आंखें बंद करके बैठे रहने के बाद देवीदीन ने कहा-आज भैया की गवाही खत्म हो गई।

बुढिया का हाथ रुक गया। बोली-तो कल से वह घर आ जाएंगे?

देवीदीन-अभी नहीं छुट्टी मिली जाती, यही बयान दीवानी में देना पड़े। और अब वह यहां आने ही क्यों लगे । कोई अच्छी जगह मिल जायेगी, घोड़े पर चढ़े-चढ़े घूमेंगे, मगर है बड़ा पक्का मतलबी। पंद्रह बेगुनाहों को फंसा दिया। पांच-छ: को तो फांसी हो जाएगी। औरों को दस-दस बारह-बारह साल की सजा मिली रक्खी है। इसी के बयान से मुकदमा सबूत हो गया। कोई कितनी ही जिरह करे,क्या मजाल जरा भी हिचकिचाए। अब एक भी न बचेगा। किसने कर्म किया,किसने नहीं किया इसका हाल दैव जाने पर मारे सब जाएंगे। घर से भी तो